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________________ समाप्ति ४७. गये । बहुत दूर नहीं, उनके ही महल्ले में उसका घर था। उन्होंने धोती दुपट्टेको अलग रखकर रेशमी चपकन पहनी, पैण्ट कसा, बढ़िया फेल्ट कैप लगाई, बार्निश किया हुआ नया बूट पहना और इमीटेशन सिल्कका सुन्दर छाता हाथमें लिया। इस तरह बड़े ठाटबाटके साथ वे घरसे बाहर निकले। भावी ससुराल में पैर रखते ही आदर-सत्कारकी धूम मच गई। थोड़ी ही देरके बाद कम्पितहृदया कन्या झाड़-पोंछकर, रंग-रँगाकर, माँगनें सिन्दूर भरकर और एक, पतले रंगीन कपड़ेमें लपेटकर वरके सामने उपस्थित की गई। वह अपने मस्तकको घुटनोंके बीचमें डाले हुए एक ओर चुपचाप बैठ गई और एक प्रौढ़ा दासी साहस दिलानेके लिए उसके पीछे खड़ी हो गई। कन्याका छोटा भाई अपने परिवारमें अनधिकार-प्रवेशोद्यत इस युवककी टोपी, घड़ीकी चैन और उगती हुई मूंछोंको टकटकी लगाकर देखने लगा। अपूर्व बाबूने कुछ समय तक मूंछोंको ऐंठते ऐंठते बड़ी ही गम्भीरतासे प्रश्न किया कि तुम क्या पढ़ती हो ? परन्तु वसनाभूषणोंसे ढके हुए उस लज्जा-स्तूपने कोई उत्तर न दिया। आखिर दो तीन बार प्रश्न किये जाने और दासीके द्वारा बारबार उत्साहजनक कर-ताड़न पानेपर उसने बहुत ही धीरे एक ही साँसमें बड़ी तेजीके साथ कह डाला-बालबोध द्वितीय भाग, व्याकरणसार, हिन्दुस्तानका भूगोल, पाटीगणित और भारतवर्षका इतिहास । इसी समय बाहरसे किसीके आनेकी आहट मिली और तत्काल ही दौड़ती हाँफती और पीठ परके बालोंको हिलाती हुई मृण्मयी श्रा पहुँची। उसने अपूर्वकृष्णकी ओर देखा तक नहीं और कन्याके छोटे भाई राखालका हाथ पकड़कर खींचातानी शुरू कर दी। उस समय राखाल पर्यवेक्षणके काममें तन्मय था, इसलिए वह किसी तरह वहाँसे जानेको राजी न हुआ। दासी इस बातका खयाल रखते हुए कि मेरे
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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