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________________ रवीन्द्र-कथाकुञ्ज कलकत्ते में पदार्पण करते ही कांग्रेसके लोगोंने नवेन्दुको चारों ओरसे घेरकर एक बड़ा भारी ताण्डव शुरू कर दिया । सम्मान समादर और स्तुति-वादकी सीमा न रही। सभीने कहा कि आप जैसे प्रतिष्ठित पुरुष जबतक देशके काममें योग न देंगे, तब तक देशका उद्धार नहीं हो सकता । इस बातकी यथार्थताको नवेन्दु अस्वीकार नहीं कर सके और इस गोलमालमें वे एकाएक देशके नेता बन बैठे । जब उन्होंने कांग्रेसके सभामण्डपमें प्रवेश किया, तब सब लोगोंने एक साथ उठकर विजातीय विलायती स्वरमें 'हिप हिप हुरे' शब्दसे उनका उत्कट अभिवादन किया। मातृभूमिके कर्ण-मूल लज्जाके मारे लाल हो गये ! यथासमय महारानीका जन्मदिवस आ पहुँचा। नवेन्दुका 'रायबहादुर' खिताब निकट-समागत मरीचिकाके समान अन्तर्धान हो गया। उसी दिन सन्ध्याको लावण्यलेखाने बड़े समारोहके साथ नवेन्दु बाबूको निमंत्रण दिया और उन्हें नवीन वस्त्रोंसे भूषित करके अपने हाथसे रक्तचन्दनका तिलक लगाया। इसके बाद उनकी प्रत्येक सालीने अपने अपने हाथोंकी गूंथी हुई एक एक पुष्पमाला उनके गले में पहना दी। बाड़में खड़ी हुई अरुणाम्बरभूषिता अरुणलेखा हास्य, लज्जा और अलंकारोंसे झलमल झलमल कर रही थी । उसके स्वेदाञ्चित और लज्जा-शीतल हाथों में एक सुन्दर माला देकर बहनोंने बहुत कुछ खींचतान की ; परन्तु उसने किसी तरह न माना और इस तरह वह प्रधान माला नवेन्दुके कण्ठकी कामना करती हुई चुपचाप जनहीन रात्रिकी प्रतीक्षा करने लगी। सालियोंने कहा-अाज हमने तुम्हें राजा बना दिया। भारतवर्षमें ऐसा सम्मान तुम्हें छोड़कर और किसीको नहीं मिला। इससे नवेन्दुबाबूको सम्पूर्ण सान्त्वना मिली या नहीं, इसे उनका
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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