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________________ रवीन्द्र-कथाकुल साधु' कहने लगे । राजा विस्मित हो रहे और कवि शेखरने इस विपुल पाण्डित्यके सामने अपनेको बहुत ही शुद्र समझा। इसके बाद श्राजकी सभा विसर्जित की गई। दूसरे दिन शेखरका गान इस प्रकार प्रारम्भ हुआवंशी सबसे पहले वृन्दावनमें बजी। उस समय गोपिकाओंने नहीं जाना कि वह किसने बजाई और कहाँ बनी । उन्हें भ्रम हुआ कि दक्षिण पवन बह रहा है। फिर मालूम हुआ कि उत्तरमें गोवर्धनगिरिके शिखरसे आवाज़ आ रही है । फिर जान पड़ा कि उदयाचलके ऊपर खड़ा होकर कोई मिलने के लिए बुला रहा है। जान पड़ा कि अस्ताचलके प्रान्त भागपर बैठकर कोई विरह-शोकमें रो रहा है ; जान पड़ा कि यमुनाकी प्रत्येक लहरसे वंशीकी ध्वनि उठ रही है; जान पड़ा कि आकाशके सारे तारे मानो उस वंशीके छिद्र हैं । अन्तमें कुज-कुञ्जमें, पथ-घाटमें, फूल-फलमें, जल-स्थलमें, ऊपर नीचे, अन्दर बाहर सब जगह वंशी बजने लगी। कोई यह न समझ सका कि वंशी क्या कह रही है ; और यह भी कोई स्थिर न कर सका कि वंशीके उत्तरमें हृदय क्या कहना चाहता है। केवल दोनों आँखों में जल भर आया और एक अलोक-सुन्दर, श्याम स्निग्ध मरणकी आकांक्षासे मानो समस्त प्राण उत्कण्ठित हो उठे। ___ सभाको भूलकर, राजाको भूलकर, आत्म-पक्ष प्रतिपक्षको भूलकर, यश अपयश, जय पराजय, उत्तर प्रत्युत्तर सब कुछ भूलकर शेखरने अपने निर्जन हृदयकुञ्जके बीच मानो अकेले ही खड़े होकर वंशीका यह गान गाया। उनके मनमें केवल एक ज्योतिर्मयी मानसी मूर्ति स्थापित थी और कानोंमें दो कमल-चरणोंकी नूपुर-ध्वनि सुनाई पड़ रही थी। कवि जिस समय गान समाप्त करके हतज्ञान होकर बैठ गये तब एक
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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