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________________ अर्थ-इस प्रकार इस धरातल पर भी पुण्य के योग से पिता और पुत्रादि के साथ २ उत्तम भोगों को भोगते हुये उस चक्रायुध राजकुमार का प्रशंसा योग्य थोड़ा समय बीत चुका था। कदाचिद्यान मलंबभूव तपम्बिना श्रीपिहिनावेण । ऋतूतमेनेव धरानलेऽम्य वमन्ननाम्ना मुमनोहरेण ।३१। प्रर्ष-अब एक दिन उम चक्रायुध क बगीचे में पिहिताश्रय नाम के उत्तम तपस्वी प्रा बिराजे जो कि फलों को स्वीकार करने वाले ऋतुराज बसन्त के समान देवतावों को भी प्यारे लगने वाले थे। ममुद्गमभृङ्गभरापदेशादपानपापीच्चयमम्मिलोपी । यस्मकिलागमवरेण हप-वरंण पुष्पाञ्जलिपिनोऽपि ।३२ । ___प्रयं-उन ऋषिराज के लिये उम भले बगीचे ने भी जब कि वे प्राये तो पुष्पाञ्जलि प्रपंरण को तो उमो समय प्रमन्नता पूर्वक मण्डराते हुये भोरों के बहाने से उम बगीचे के पूर्वोपाजित पाप के अंश भी इधर उधर भागने लगे। लना मता लाम्यमिवापतेनुः ममारिता मञ्जममीरगन । समुच्चलत्पल्लवपाणिलेशमशेप मामोद महाग्येण ।३३। ' प्रयं-प्रसन्नता पूर्वक सभी लतावों पर एक मुगन्ध को लहर निकलने लगी और मन्द २ बहने वाली हवा के द्वारा उनके पत्ते भी हिलने लगे जिससे वे ऐमो जान पड़ती थी मानों अपने हायोंके इशारे से एक प्रकार का मुन्दर नृत्य ही करने लग गई हो। ग्वेरिवान्मकावेदार-भूनेऽनुभूने म मुद्दोऽधिकारः । उद्यान सम्पालककुक्कुटेनाऽपगजिनः कोकडवागना ।३।।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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