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________________ प्रपं-उस राजा के जो रानी यो उसका नाम रामदत्ता था जो कि हम घगनल पर होने वाले शोलादि गुरणों को सहज स्वभाव मे हो धारण करने वाली यो प्रोर रूप मौन्दयं का भी भणार थो जो कि कामदेव की स्त्री पनि दवा करतो है हनने पर भी वह मोक दिन के कार्यो में दामी के ममान हर समय जुटो रहती थी। श्रीमतिनामा मचिया रम्य पूती-ङ्गिनः मदा दह दयप्रमूनिः । मूनिम्न्यही विप्रकलानथापि य वेग कांगम्य यथा कदापि ॥२१॥ प्रयं-3म गजा के श्रीभूति नाम का मन्त्री था, परिवह माहा कल में पदा हवा या फिर भी प्राचयं है कि जोवों में कावा मगोवा या जिपके मन में पदा बृरी वासना बनी रहा करती थी नाकि उममे जब कभी वोटी चेटा ही बन पडतो यो। अमन्यता नवधानतोऽपि म्यां चंदवेयं बनयाऽमलोपी। ममंतिक विधनाऽमिपुत्री येनामको वञ्चकनातिमत्री १२२ प्रयं-उमने जनता में यह प्रगट कर रकवा था कि मै कभी भूट नही बोल माता पोर इमो लिये उसने यह कहकर कि "प्रगर हो प्रमारथान पनेसे भी मेरे से झट बुल गया तो मैं इससे मेरे प्राण गमा दूंगा" प्रमः अपने गले में एक छुरो बान्ध लो यो। ग्यानिंगतो भद्रपरम्गयां नालीकवागिन्यमको धगया। गन्ना म्यवापापि तु मन्योप-नामान्तरंगे मुनगं मदोषः १२३ मयं-जिमसे कि उमको हम पृथ्वीतल के भोले लोगों में यह कभी झूठ नहीं बोल सकता है इस प्रकार की प्रसिद्धि हो गई
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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