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________________ यथा सुशास्त्राद्विधिनान्तरीपात जग्राह विद्वान दरितप्रतीपात । नत्वोक्त रत्नानि मुबुद्धिनावा समेत्य मदिः मह तैस्तदा वा ।१७ प्रयं-जैसे कि एक विद्वान मनुष्य अपने सहपाठी लोगों के साथ उत्तम शास्त्र को पढकर उसमे से जीवादि सात तत्वों को प्राप्त कर लेता है उसी प्रकार उस भामित्र नर ने भी नावमें बैठकर अपने साथियों के साथ रत्नद्वीप जाकर वहां से पथा रोति उसने सात रत्न लिये। अर्थकमम्मिन भग्ने विभाति मनाहा (महपुर मुनानि । राजाप्यभृत्स्य पुनः पदन प्रमिद्धिमानः मनु सिंहसेनः । १८ प्रयं-किञ्च इसा भरत मंत्र में एक मिहपुर नामका नगर है जो कि देखने में बड़ा ही मुन्दर है, जिसकी महक या मकाना को पंक्ति बहुत ही अच्छी है उस नगर का राजा उस समय मिहसेन था। सेना यतः सिंहपराक्रमाणा मामीद मुध्यातिशयान्नगणा । मृणिप्रकागऽस्मिताभ्यः माऽन्वथनामा ममद्ययेभ्यः ।१० प्रथं-उमराजाका मिहमेन नाम माधक हो या कोंकि उम राजा के पास मो सेना थी वह सिंह मी पगामी मंनिकों मे युक्त पी ताकि वह बरीप हाथियों के लिये प्रकुश का काम देती थी। गीह नाम्ना भुवि गमहत्ता निसर्गतः शीलगुण कमला । रतिः स्मरम्येव मुरपशिः ममथिता लोकाहिनाय दामी ।२०
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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