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________________ गृहीजनश्चेव माय हीनः माधः मगेपः म इवाथ दीनः भृत्वेनग्वामपि सम्बिधानी म्वयं पुना गैरवमेव याति ।३४। ___प्रयं-देखो गुफजीने कहा था कि जो गृहस्थ होकर व्यवसायटोन होता है, कुछ भी कारवार नहीं करता वह कोषो मुनीइबर की तरह दोन टोकर प्रांगण को भी नुकसान करनेवाला होता है और पाप तो गैरव नरक जाता ही है। परेण पृष्टः कमिन्ध सम्स्तुत्व या यदत बनु वृनवस्तु । य आह मोदाहरणमिति म सम्भवेन्मम्बदनकविद्धि ।३५॥ प्रथं ऐमो बात गुनकर उनमें से किमो दूसरे ने कहा कि मापने जो बात कही वर किम प्रकार से मानी जा मकतो है ? प्राप अपनी हम बात को किमो भी गनी कयाके द्वारा स्पष्ट करके उदाहरण पूर्वक कहो क्योंकि दृष्टान्त पूर्वक प्रपनी मात को श्रोतामोंको ममना देनेवालाही सत्चा बना होता है। प्रतिममथ यता निजलसण मितिनिगम्य म बुद्धिविचक्षणः प्रवननन पुगभवनक मनबदनिज गाद कलानकः ३६। प्रयं-इम प्रकार मुनकर उम बुद्धिमान बालकने अपनी कही हुई बात को ममपंन करने वाली पूर्वज लोगों के मूक्तको लेकर उसमे एक पुगनी कपा को दोहगते हुये प्रागे लिखे अनुसार निर्दोषरूप से करने लगा। इति पं० भूगमनापानाम ललक श्री १०५ श्री ज्ञानमूषणजी महाराज द्वार। राचत इस भद्रोदय अन्य में यह प्रथम सर्ग पूर्ण होगा।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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