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________________ विश्वास नहीं करना इमलिये हे माता तुम कभी भी प्रसत्य बोलने बाले को जन्म मत देना। ममन्यवक्त : परिहार पूर्व मामीस्थि निम्मूनृत भाषितुर्वः । मो पाटका वच्मि यथावशक्ति यत्राम्मदीयाप्रथिनाम्निभक्तिः ।। प:--पूर्व ममय में प्रमय बोलने वाले का निराकरण करके सत्य बोलने वाले को किस प्रकार से इज्जत हुई और उसने किस प्रकार प्रपनी उन्नति की, बस मै इसी बात को मेरी शक्तिभर पाठको ! प्रापके सामने रखूगा क्योंकि सत्य पर मेरो पढा है। ममन्तभद्रादि महानुभावा युक्ताः कविन्वाचितमम्पदा वा । वाग्देवता यमनाप्रति न्यामीन्प्रहतु भवमम्भवानि ।।११।। :-कविता करने योग्य महिमा से तो पूर्व में समन्तभाचायं मरो महानुभाव युक्त होगये हैं जिन को कि जीभ के प्रप्रभाग में वाणो का निवास या पोर जिनकी कि वाणी इस संसार के दुःखों में दूर करने वालो यो। नाहं कविमन्यभवी तु अम्मि माम्बनीमंग्रहणाय नम्मिन । ममाप्यतः काव्यपधेऽधिकार: ममस्तु पित्रीननुवालचार: ।१२। ___प्रध:- में कवि नहीं हूँ, केवल एक मनुष्यभवका धारण करने वाला मामय है बम इस मनुःपता के नाते काय करनेरूप सम्मागं में मेरा भी साधारण मा प्रधिकार है क्योंकि पिता वगैरह सरोबो लोगोंके पीछे पीछे ही बालक भी चला करता है।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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