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________________ कार्य हो सहूंगा जमे कि सेतुके द्वारा हो समुा से पार हा जाता है अथवा कवच को पहन कर हो हपियारों को चोट से बाबा सकता है। गंगेव वाणी गुणभद्रमना महापुगणी जगतेऽस्तिपूना । ततः प्रमूनेयमपीह कुल्या शम्योक्तिसम्पत्प्रकरकमूल्या १७ ___ अर्थः -- जिसके द्वारा महा पुगरण का जन्म हुवा है वह भी गुणभावायं को वारगी गंगा गयो के समान है जो कि संसारो बोष के लिये पवित्र मानो गई है, अगाध जल का होना मावि गुण युक्त है पोर जो कि बहुत ही पहले से चलो पाई हुई है। अब यह मेरी सत्य सम्पनरूप रचना भो उमो मागरण की रचना में से एक अपने डङ्ग से लोहई है प्रत: गंगासे निकला महर के समान है, जिसका कि सत्य को बराई करना हो एक काम है, नहर भी धान्य को फसल को बचाने के लिये ही होती है। मन्यन लोके भाति प्रतिष्ठा मन्यन लक्ष्मीभवनाद्विशिष्टा । मत्येन वाचः मफलबमम्त मन्यं ममन्नान्महदम्निवस्तु ।।८।। अर्थः-मत्य के द्वारा संसार में इम्मत होती है, सत्य से लक्ष्मी को बढ़वागे होती है मरय से ही मनु के वचन को सफलता है, सत्य बोलना हर तरह से बहुत अच्छा है। अमन्यवन नरके निपानवागन्यवन : बयमेवघानः । व्यलीकिनाऽप्रन्ययमम्बिधाऽनःप्रोत्पादयेम्ननकदापिमातः ।९ प्रपं:-झूठ बोलने वाले का खुब का हो पात होता है पोर वह नरक में जाता है, तया च प्रसत्य बोलने वाले का कोई भी
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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