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________________ आनन्दघन का रहस्यवाद इतना ही नहीं, ‘मनसा नटनागर सुं जोरि' पद में प्रेमलक्षणा-भक्ति की पराकाष्ठा के भी दर्शन होते हैं।' प्रेमलक्षणा-भक्ति के अतिरिक्त भक्ति के अन्य रूप भी आनन्दघन में पाये जाते हैं। 'सुहागिन जागी अनुभौ प्रोति'२ पद में पराभक्ति की पूर्णता का वर्णन किया गया है। भक्ति संबंधी अन्य पद भी आनन्दघन में देखे जा सकते हैं। वे इस प्रकार हैं जिन चरणे चित ल्याउं रे मना ।३ इसी तरह ‘मनुप्यारा मनुप्यारा, ऋषभदेव मनुप्यारा' तथा 'प्रभु तो सभ अबरन कोई खलक में'५ आदि-आदि। __ भक्ति के आधार पर तन्मयता, भावुकता एवं संगीतात्मकता का जो अपूर्व समन्वय इन पदों में दृष्टिगत होता है, वह अद्भुत है। शृङ्गार एवं विरह-मिलन सम्बन्धी पद ___ आनन्दघन के शृंगार एवं विरह-मिलन के पद उनकी कविता को नैसर्गिक रूप प्रदान करते हैं। विरहात्मक पदों में आनन्दघन की आत्मा को तड़पन भरी हुई है। उनकी भक्ति की प्रगाढ़ता विरह-मिलन के पदों में प्राप्त होती है। विरह गीत आनन्दघन के अधिकांश पदों में चचित है। विरहावस्था के पदों का असर सीधे पाठक के हृदय पर पड़ता है और उसकी गेयता व्यक्ति को मुग्ध कर देती है। विरह-वेदना के पद अत्यन्त अनुभूतिपूर्ण एवं मार्मिक हैं । यथा -"पिया बिन सुधि बुधि भूली हो" ।६ -"पिया बिन निसदिन झूखं खरीरी" । -"पिया बिन कोण मिटावे रे, बिरह व्यथा असराल ।"८ १. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ४९ । २ वही, पद ५४ । ३. वही, पद ८१ । ४. वही, पद ९३ । ५. वही, पद ८९ । ६. वही, पद २६ । ७. वही, पद १६ । ८. वही, पद २७।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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