SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आनन्दघन: व्यक्तित्व एवं कृतित्व होता है । समस्त दुःख और दुर्भाग्य दूर हो जाते हैं तथा आत्मिक सुखसम्पदा की प्राप्ति होती है । ८७ (१४) अनन्त जिन स्तवन : - इसमें परमात्मा की चरण सेवा को तलवार की धार पर चलने से भी अधिक कठिन बताया गया है। साथ ही, यह भी कहा है कि जड़ क्रियावादी वास्तविक समझ के अभाव में चतुर्गति रूप संसार में परिभ्रमण करते रहते हैं । कितने ही लोग गच्छ (सम्प्रदाय) के भेद-प्रभेदों में इतना ममत्व रखते हैं कि तत्त्व को ही विस्मृत कर बैठते हैं । परमात्मा की यथार्थ सेवा के लिए साधक में सम्यग्दर्शन, देव, गुरू और धर्म के प्रति श्रद्धा, शास्त्र नियमों के अनुसार आचरण जरूरी है। अन्यथा साधक के द्वारा की गई समूची क्रिया छार पर लीपने जैसी व्यर्थ है । (१५) धर्म जिन स्तवन : - इसमें परमात्मा के साथ अटूट अभिन्न प्रीति रूप का विश्लेषण है । इसमें भक्ति की अजस्र धारा प्रवाहित हुई है। (१६) शान्तिजिन स्तवन :- इसमें परमात्मा से शान्ति के सम्बन्ध में समाधान प्राप्त कर उसके स्वरूप का मनोरम ढंग से अति संक्षेप में वर्णन है । (१७) कुन्थु जिन स्तवन : - इस स्तवन में 'जिसने मन को साध लिया, उसने सबको साध लिया' (मन साध्युं तेणे सघलुं साध्यं)' इस उक्ति का प्रयोग कर आनन्दघन ने मनोविजय के लिए परमात्मा से प्रार्थना करते हुए मन की चंचलता का हूबहू चित्रण किया है । (१८) अरजिन स्तवन : - इसमें धर्मं की यथार्थ पहचान बताकर, द्रव्य और पर्याय एवं निश्चय और व्यवहार नय के समन्वय द्वारा आत्मतत्व का विश्लेषण है । (१९) मल्लि जिन स्तवन : - इसमें अठारह दोषों के नामों का निर्देश करते हुए परमात्मा को उनसे बताया गया है । (२०) मुनि सुव्रत जिन स्तवन : - इसमें आत्मतत्त्व के साक्षात्कार की प्रबल जिज्ञासा व्यक्त की गई है तथा विभिन्न आत्मवादियों के एकान्तिक मत का खण्डन किया गया है।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy