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________________ २८ आनन्दघन का रहस्यवाद पहचाना जाता है। सिद्धों की भांति इसमें भी साधनात्मक रहस्यवाद ही पाया जाता है। वस्तुतः इस पंथ में भी वे ही सब बातें दृष्टिगोचर होती हैं, जो सिद्ध सम्प्रदाय में वर्णित है । लौकिक प्रतीकों के द्वारा रहस्य-तत्त्व की गूढ़ अभिव्यक्ति की चेष्टा नाथपंथियों में भी मिलती है । यथा - शून्य, निरंजन, नाद, बिन्दु, सुरति निरत, सहज इत्यादि सिद्ध साहित्य के पारिभाषिक शब्द | देखिए - गगन मंडल में अंधा कूआ, तहां अमृत का बासा । सगुरा होय सो भरि भरि पीवै, निगुरा जाइ पियासा | ' इडा-पिंगला और सुषुम्ना का प्रयोग भी गोरखबानी में इस प्रकार है : अब ईड़ा मारग चन्द्र भणीजै, प्यंगुला मारण भाणं । सुषुमनां मारण वाणी बोलिए, त्रिय मूल अस्थानं ॥ २ इनमें अनहदनाद की रहस्यमय अभिव्यक्ति भी निम्न रूप में वर्णित हुई है : अनहद सबद बाजता रहै सिध संकेत श्री गोरष कहै । ३ नाथ सम्प्रदाय के हठयोग की नाका अवलोकन करने पर विदित होता है कि उसमें अनेक तत्त्वों के गूढ़ार्थ समाहित हैं। सभी तत्त्व सूक्ष्म और आन्तरिक होने से साधनात्मक रहस्यवाद की सृष्टि करते हैं । इसमें आन्तरिक साधना पर भी बल दिया गया प्रतीत होता है । यथासन्ध्या पूजा के लिए सुषुम्ना नाड़ी की सन्ध्या ही नाथपंथियों के अनुसार वास्तविक पूजा कही जाती है । इसी तरह हृदय में आत्मा का प्रतिबिम्ब पड़ता है— दृश्यते प्रतिबिम्बेन आत्म रूपं सुनिश्चितम् । नाद और बिन्दु भी इस साधना में केन्द्रबिन्दु हैं । " नाथपंथियों के अनु १. गोरखबानी, २३ । २. गोरखबानी, ९४ । ३. वही, १०६ । ४. सुषुम्णा संधिनः सा सन्ध्या संधिरुच्यते । ५. नाथांशो नादो नादांश प्राणः शवत्यंशो बिन्दुः । बिन्दोरंशः शरीरम् । - गोरक्ष सिद्धान्त संग्रह ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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