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________________ २५ आनन्दघन का रहस्यवाद सिद्ध अपनी साधना को प्रतीकों के द्वारा स्पष्ट करते हैं। उन्होंने उलटीबानी के द्वारा भी रहस्य को प्रकट किया है।' सिद्ध तन्तिपा की अटपटी बानी भी रहस्यपूर्ण है ।२ सिद्ध लुइपा ने (सं० ८३०) साधना को गूढ़ रखने की दृष्टि से प्रतीकों की योजना निम्न रूप में की है काआ तरुवर पंच बिडाल, चंचल चीए पइठो काल । दिअ करिअ महासुण परिमाण, लूइ भणई गुरु पुच्छिअ जाण ।। अर्थात् इस कायारूपी वृक्ष में बिल्लीरूप पाँच विघ्न हैं (बौद्ध ग्रन्थों में ये पाँच विघ्न-हिंसा, काम, आलस्य, विचिकित्सा तथा मोह माने गए हैं)। इन पाँच विकारों की संख्या को निर्गुणधारा के सन्तों एवं हिन्दी के सूफी कवियों ने भी अपनाया है। कलपा सिद्ध (सं० ९०० ऊपर) भी ईडा-पिंगला को गंगा-यमुना के प्रतीकों द्वारा योग की क्रियाओं का वर्णन करते हैं : गंगा जमुना मांझरे बहई नाई। तहि बुडिलि मातंगि पोइला लीले पार करेइ ॥ सिद्धों की वाणी में यौगिक और तान्त्रिक क्रियाओं के कारण नाड़ी, षट्चक्र, अनहतनाद, बिन्दु इत्यादि तत्त्वों की आन्तरिक सूक्ष्म गतिविधियों का वर्णन भी किया गया है । १. दोहाकोश २६, ६९। २. बैंग संसार बाडहिल जाअ । दुहिल दूध कि बटे समा । बलद बिआएल गविया वांझे । पिटा दुहिले एतिना सांझे । जो सो बुज्झी सो धनि बुधी । जो सो चोर सोइ साधी । निते निते पिआला पिहे अम । जूझअ ढंढपाए गीत विरले बूझव ॥ -बौद्धगान ओ दोहा, उद्धृत-आधुनिक हिन्दी काव्य में रहस्यवाद, पृ० ११ । ३. वही। ४. वही। ५. नाड़ी शक्ति दिअ धरिअ खदे । अनहद डमरू बाजइ वीर नादे । कान्ह कपाली जोगी पइठि अचारे । देह-नअरी बिचरइ एकारे ॥ -बौद्ध गान ओ दोहा (कान्हिपा)।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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