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________________ रहस्यवाद : एक परिचय २३ प्रतीक बताते हुए ईशोपनिपद् एवं कार में कहा गया है कि सत्य का, वास्तविक तत्त्व का मुख सुवर्णमय पात्र से ढका हुआ है । हे पूषन् ! तू उस ढक्कन को हटा दे जिससे उस सत्य धर्म की, वास्तविक तत्त्व की, साक्षात् प्रतीति मुझे हो सके ।' उपनिषदों में सृष्टि की उत्पत्ति सम्बन्धी और उत्पत्ति-पूर्व अस्तित्त्व सम्बन्धी चिन्तन पाया जाता है। उत्पत्ति-पूर्व अस्तित्त्व सम्बन्धी चिन्तन में रहस्य-भावना का दिग्दर्शन हुआ है।२ तैत्तिरीय उपनिषद् में यह भी कहा गया है कि ब्रह्म का साक्षात्कार हृदय में होता है। इस हृदय में जो आकाश है, उसमें यह विशुद्ध प्रकाश स्वरूप मनोमय पुरुष (परमेश्वर) रहता है। यह 'परमतत्त्व' रहस्यमय होकर आनन्दस्वरूप है।३ श्वेताश्वेतर कठोपनिषद् में आत्मा के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा है-“यह अणु से भी अणु और महान् से भो महान् आत्मा इस जीव के अन्तःकरण में स्थित है। इतना ही नहीं, कठोपनिषद् में रहस्यानुभूति की अनिर्वचनीयता भी व्यक्त हुई है।" इस प्रकार कहा जा सकता है कि उपनिषदों में, ब्रह्म और जगत्, आत्मा और परमात्मा आदि का सम्यक् चिन्तन लक्षित होता है । वेदों की अपेक्षा औपनि साहित्य में आत्मा और परमात्मा (ब्रह्म) के अद्वैत पर आधारित रहस्य-भावना का सुन्दर दिग्दर्शन हुआ है। आत्मा में परमात्मा का साक्षात्कार करना ही उपनिषदों का रहस्य है। १. हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् । तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥ -ईशोपनिषत् १५ एवं बृहदारण्यक उपनिषत् ५।१५।१ . २. सदैव सोम्येदमग्र आसीदेक मेवाद्वितीयम् । तद्वैक आहुर सदेवेदमा आसीदेकमेवाद्वितीय। तस्मादसतः सज्जायत। -छान्दोग्योपनिषद् ६।२।१ ३. तैत्तिरीयोपनिषद्, २७ ४. अणोरणीयान्महतोमहीयानात्मा गुहायां निहितोऽस्य जन्तोः । - श्वेता० ३।२० एवं कठ० २०२० ५. नैव वाचा न मनसा प्राप्तुम्शक्यो न चक्षुषा । अस्तीति ब्रुवतोऽन्यत्र कथं तदुपलभ्यते ॥ -कठ०, २।३।१२
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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