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________________ ११० आनन्दघन का रहस्यवाद तब समता उदिम कियो, मेट्यो पूरब साज। प्रीति परम. मुं जोरिकै, दीन्हो आनन्दघन राज ॥' इस प्रकार कहा जा सकता है कि आनन्दघन ने समता नारी को पतिव्रता, हितैषिणी, सच्ची प्रेमिका और चेतन को सुपथ पर लाने वाली आदर्श नारी के रूप में चित्रित किया है। आनन्दघन के समग्र रहस्यवादी दर्शन में उसका चरित्र उज्ज्वल शशि-रश्मियों में आलोकित है। दूसरी ओर ममता नारी का चित्रण चेतन को पथ-भ्रष्ट करने वाली कुलटा, कुटिल, छिनाल, गणिका, धूर्त, कपटी, कृपण, दुर्गति में ले जानेवाली नारी के रूप में किया है। ___ कुमती, ममता-माया आदि वैभाविक परिणतियों को आनन्दघन ने मोहिनी नाम दिया है, क्योंकि इसमें चेतन को मोहित करने का गुण है। इसी कारण इसने चेतन के घर में पहुँचते ही अपना प्रभुत्व जमा लिया ओर उस पर अपना मोहिनीरूपी जादू की छड़ी ऐसी घुमाई कि वह समता से एकदम विमुख हो गया और इस मोहिनी ममता के बढ़े-चढ़े सौन्दर्य को देखकर इतना चकित हो गया कि उसके पीछे अपने कर्तव्याकर्तव्य का भान भी भूल बैठा। इस सम्बन्ध में आनन्दघन ने यथार्थ ही कहा है : ममता खाट परै रमै, ओनोंदे दिन रात। लेनो न देनों इन कथा, भोरे ही आवत जात ॥२ ममता नारी में यदि कोई गुण है तो वह है मोहित करने का। किन्तु वह स्वर्ण-कटार किस काम की, जिसका स्पर्श मात्र प्राणान्त का कारण बन जाता है। इसी तरह, यह मोहिनी ममता भी आरम्भ में चेतन को संसार में आसक्त कर देती है और अन्त में उसे दुर्गति में ले जाती है। इसीलिये आनन्दघन ने उसे दुष्टा नारी के रूप में चित्रित किया है। उसके स्वभाव, हावभाव, क्रिया-कलाप आदि से उसकी कुटिलता परिलक्षित होती है। अपने साथ-साथ वह चेतन को भी यत्र-तत्र भटकाती रहती है। इसी कारण आनन्दघन ने उसे 'छिनाल'३ (पुश्चलि, व्यभिचारिणी) शब्द से अभिहित किया है। यह उसकी जातिगत विशेषता है। १. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ३९ । २. वही, पद ३५। ३. अलवै चालो करती देखी, लोकडा कहिस्ये छिनाल । ओलंभडा जण जण ना आणी, हीयडै उपासै साल ॥ --वही, पद ४७।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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