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________________ १०६ आनन्दघन का रहस्यवाद परिवार का विस्तार चारों ओर फैला हुआ है और इसी ने मेरे पतिदेव को वश में कर रखा है। वस्तुतः चेतन राज को फंसाने वाली ममता नारी है जिसके कारण चेतन अपना भान भूले हुए हैं। यद्यपि चेतन शुद्धात्म स्वरूप है, अनंत गुणों से युक्त है, उसमें किसी प्रकार का विकार नहीं है, फिर भी 'जैसा खावे धान, वैसी आवे शान' और 'खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है आदि कहावतों के अनुसार चेतन माया-ममता नारी के सहवास में अनादिकाल से रहने के कारण, निजस्वरूप से च्युत हो गया और समता नारी के साथ उदासीन बन बैठा है। समता अपनी सौतन ममता के कारण अपने प्रियतम चेतन से मिल नहीं पा रही है, किन्तु प्रियतम से मिलने के लिए उसकी अन्तरात्मा छटपटा रही है। जिस प्रकार एक विरहिणी अपने पति के वियोग में विरहाग्नि से दिनरात संतप्त रहती है, उसी प्रकार समता भी हर-तरह से विरह-दशा का वर्णन कर अपने प्रियतम तक अपनी दयनीय स्थिति का सन्देश पहुँचाना चाहती है। जब तक उसका अपने प्रियतम से मिलन नहीं होता, वह पति-वियोग का कष्ट सहन नहीं कर पाती। समता नारी का विरहिणी स्वरूप भी उसके चरित्र को दीप्ति प्रदान करता है। प्रिय-पथ की पथिका बनकर भी वह 'पिया-पिया' (पिऊ-पिऊ) कह कर विलाप करती है और अपने पिया के आगमन की दिनरात प्रतीक्षा कर रही है । ___ इस प्रकार, समता नारी विरहावस्था के दुःख के भार को सहने में नारी-सुलभ कोमलता और दुर्बलता का परिचय देती है। आनन्दघन समता का अबला के रूप में चित्रण करते हुए कहते हैं : १. विवेकी पी। सह्यो न परें, वरजो न आपके मीत । कहा निगोरी मोहनी मोहक लालगंवार । बाकें घर मिथ्या सुता, रीझ परै तुम्ह यार ॥ क्रोध मान बेटा भए, देत चपेटा लोक । लोभ जमाई माया सुता, एह बढ्यो परमोक ।। -आनन्दघन ग्रन्थावली, पद ३९ । २. वही, पद ३४ । ३. वही, पद ३१ ।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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