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________________ १०० आनन्दघन का रहस्यवाद सांइडा, भंवर, श्याम, बंसीवाला आदि शब्द प्रतीक रूप में आए हैं। इसी तरह साधक रूपी आत्मा के लिए भी सुहागिन नारी, प्रिया, स्वामिनी, बड़ीबहू, सुमति-समता, चेतना, आदि शब्द प्रतीक रूप में प्रयोग किए गए हैं। ___ आनन्दधन ने एक पद में पति-पत्नी के प्रतीकों के स्थान पर 'चकवा' और 'चकवी' के प्रतीकों का भी प्रयोग किया है। यहाँ चकवा शुद्धात्मा का प्रतीक है और चकवी साधक की अन्तरात्मा का प्रतीक है । वास्तव में दाम्पत्य प्रतीक-योजना में आनन्दघन के रहस्यवाद का रूप निखरा है। ___संक्षेप में, आनन्दघन द्वारा प्रयुक्त दाम्पत्य-प्रतीकों के सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि समता, चेतना, प्रिया, पत्नी या प्रियतमा साधक की अन्तरात्मा का प्रतीक है और प्रियतम, पति या चेतन परमात्मा या शुद्धात्म-चेतन रूप साध्य का प्रतीक है। इस प्रकार, साधक और साध्य रूप अन्तरात्मा-परमात्मा के बीच भावाना-नादान्य-जन्यन्ध स्थापित करानेवाला प्रेम निरूपाधिक प्रेम या विशुद्ध आत्म-प्रेम रूप साधना का प्रतीक है। निरुपाधिक प्रेम-साधना द्वारा साधक की अन्तरात्मा साध्यरूपी परमात्मा में इस प्रकार एकाकार हो जाती है कि दोनों में कोई अन्तर नहीं रह जाता। जैनदर्शन का 'अप्पा सो परमप्पा' का रहस्य इस इस स्थिति में पूर्णतः प्रकट हो जाता है। तात्त्विक रूप से दोनों में कोई अन्तर नहीं रहता और इसी अभेद या अद्वैत की अनुभूति करना रहस्य १. आनन्दघन ग्रन्थावली, पद १९, ९८ । २. वही, पद २० । ३. वही, पद ८८। ४. वही, पद ९८। ५. वही, पद ८६, ५४ । ६. वही, पद २६ । ७. वही, पद ३५ । ८. वही ९. वही, पद ३४, ३२, ३१, ३६, ३८, ३९, ४० आदि । १०. वही, पद ३८, ४१, ७३, १०५ । ११. वही, पद ७३।
SR No.010674
Book TitleAnandghan ka Rahasyavaad
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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