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________________ नमो मन्त्र अनाहत स्वरूप 'नमो' मत्र उच्चारण मे सरल, अर्थ से रक्षण करने वाला एव फल से ऊर्वातिऊर्ध्व गति मे से जाने वाला है, अत' महाम: है। उच्चारण करते ही यह सब प्राणो को ऊँचे ले जाता है और यह सर्वप्राणो को परमात्मा मे विलीन कर देता है वह शब्द से सरल, अर्थ से मागलिक एव गुरण से सर्वोच्च है नम्रता सव गुणो मे परम गुण है । अपनी सत्ता को अरण रूप समझने वाला ही महान् से महान् तत्त्व के साथ सबधित हं हो सकता है । पूर्णता शून्यता का ही सर्जन है। 'नमो' मः मे शून्यता निहित है अत वह पूर्णता का कारण बनता है 'नमो' अनाहत स्वरूप है क्योकि वह भाव प्रधान है । ज्ञान अक्षरात्मक है एव भाव अनक्षर स्वरूप है । अत उसक अालेखन अनाहत के द्वारा ही सम्भव हो सकता है फि ज्ञानोपयोग की स्थिति अन्तर्मुहूर्त से अधिक नही है। भाव के स्थिति अव्याहत है । दीर्घकालीन होने के कारण उसक आलेखन अथवा प्राकलन शब्द द्वारा सम्भव नही। परमात्र केवल ज्ञान ग्राह्य नही किन्तु भाव ग्राह्य है। भाव स्वरूप तर भक्ति स्वरूप होने से 'नमो' पद के द्वारा परम तत्त्व व अनुभूति हो सकती है । छद्मस्थ जीवो के लिए जहाँ ज्ञान व अन्त है वही भाव का प्रारम्भ है । पृथक्करण करने के कार जहाँ ज्ञान द्वैत स्वरूप है वहाँ भाव एकीकरण करने के कार अद्वैत स्वरूप है। इसीलिए परमात्मा के साथ अद्वैत भा नमस्कार से ही साधा जा सकता है। रुचि अनुयायी वीर्य नमस्कार-भाव प्रशसात्मक तो है ही साथ ही प्रादर, प्री एव बहुमान वाचक भी है। नमस्कार भाव से परमतत्त्व
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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