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________________ ४२ मन्त्र मे स्वय की कर्मबद्ध अवस्था का स्वीकार होता है, अरिहतो की कर्मयुक्त अवस्था का ध्यान होता है एव कर्ममुक्ति के उपाय-स्वरूप ज्ञान, दर्शन एव चारित्र का पाराधन होता है। नायिकभाव की प्राप्ति नवकार मन्त्र से प्रौदयिक भावो का त्याग, क्षायोपश मिकभावो का आदर एव परिणाम-स्वरूप क्षायिकभावो की प्राप्ति होती है। नवकार मन्त्र के आराधक को मधुर परिणाम की प्राप्ति रूप सामभाव, तुला परिणाम की आराधना रूप समभाव एव क्षीरखण्ड युक्त अत्यन्त मधुर परिणाम की आराधना रूप समभाव की परिणति का लाभ होता है । नवकार की आराधना से चिन्तामणि, कल्पवृक्ष एव कामकुम्भ से भी अधिक श्रद्धेय, ध्येय एव शरण्य की प्राप्ति होती है । ___नमो पद से क्रोध का दाह शमित होता है, अरिह पद से विपय-तृपा नष्ट होती है एव ताण पद से कर्म का पक शोषित होता है। दाह शमन से शान्ति होती है, तृषा मिटने से तुष्टि होती है एव पक शोषण से पुष्टि होती है। अत इस मन्त्र के लिए तीर्थ-जल की एव परमान्न की उपमाएं सार्थक होती हैं। परमान्न का भोजन जैसे क्षुधा निवारण कर चित्त को तुष्ट एव देह को पुष्ट करता है वैसे ही इस मन्त्र का पाराधन भी विषय-क्षुधा का निवारक होने से मन को शान्त कर चित्त को तुष्ट एव आत्मा को पुष्ट करता है । 'नमो' उपशम है, 'अरिह' विवेक है एव ताण सवर है । नवकार मन्त्र मे कृतज्ञता एव परोपकार, व्यवहार एव निश्चय, अध्यात्म एव योग, ध्यान एव समावि, दान एव पूजन, शुभ विकल्प एव निर्विकल्प, योगारम्भ एव योग सिद्धि, सत्त्वशुद्धि एव सत्त्वातीतता, पुरुषार्थ एव सिद्धि, सेवक तथा सेव्य,
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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