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________________ त्रिकरण योग करना, करवाना एवं अनुमोदन करना । द्रव्यप्राण-द्रव्यप्राण के दस भेद हैं, स्पर्श, रस, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र, मनोबल, वचनबल, कायबल, श्वासोच्छ्वास एव आयुष्य । नव तत्त्व-जीव, अजीव, पुण्य, पाप, श्रास्रव सवर, निर्जरा, वध, एव मोझ ये नवतत्त्व है। निगोद-जीव की एक निकृष्ट अवस्था । परिपह-संवर के पांचवे प्रकार में परिषह आता है। धर्ममार्ग मे दृढ रहने तथा कर्मबन्धनो का विध्वस करने के लिए जो-जो स्थिति समभावपूर्वक सहन करने योग्य है उसे परिषह कहते है। भावप्राण--ज्ञान, दर्शन, चारित्र एव वीर्य ये चार भाव प्राण हैं । इन्हे अनन्तचतुष्टय भी कहते हैं। मिथ्यात्व--गलत मान्यता । मिथ्याभिनिवेश-कदाग्रह। स्कन्ध-पौद्गलिक पिण्ड। सवर-जीव मे कर्म के आगमन को रोकने वाला। समिनि-सम्यक् प्रकार की चेष्टा । ये पाच हैं-एवं जीवन का प्रत्येक कार्य उपयोगपूर्वक करने की शिक्षा देती है। - ज्ञान--जनदर्शन मे ज्ञान पाच प्रकार का माना गया है-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन.पर्याय एवं केवल ज्ञान ।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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