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________________ अप्रतीत है. उसकी प्रतीति करवाता है . वैसे ही. धर्मतत्त्व अनिर्णीत है उसका निर्णय करवाता है । ___कम से कम प्रयत्न से अधिक से अधिक फल लाने की शक्ति नमो मत्र मे है । 'नमो' पद मे मैत्री, प्रमोद, कारुण्य तथा माव्यस्थ्य भावनायो के साथ अनित्य अशरण संसार, एकत्व, अन्यत्वादि भावनाए ममाविष्ट हो जाती हैं । अत प्रथम पद अति गभीर है। .. नवकार में अष्टांग योग नमस्कार जिस प्रकार मोक्ष का बीज है वैसे ही अनमस्कार संसार का वीज है। नमनीय को नही नमन करना तथा अनमनीय को नमन ससार वृक्ष का वीज है। अनमनीय को अनमन तथा नमनीय को नमन धर्मवृक्ष का बीज है। नमनीय को नमस्कार सभी दुखो का तथा पापो का नाशक है | नमनीय को अनमस्कार, सभी दु खो का तथा पापो का उत्पादक है। एक अग्रेज लेखक ने ठीक ही कहा है कि "प्रार्थना सयोगो को सुधारती है। अप्रार्थना सयोगो को विगाडती है, दोनो मे से कोई निष्क्रिय-निष्फल नहीं।" नवकार मे तप है, स्वाध्याय है तथा ईश्वरप्रणिधान है। तप से शरीर सुधरता है, स्वाध्याय से मन सुधरता है तथा ईश्वरप्रणिधान से आत्मा सुधरती है। - परमात्मा के समीप बसने हेतु प्रथम अनात्मा के सग से मुक्त होना चाहिए । आसन शरीर का सग छुडवाते हैं। प्रारणायाम प्राणो पर नियमन लाता है। प्रत्याहार इन्द्रियो का सग छुडवाता है। धारणा, ध्यान तथा समाधि अनुक्रम से मन, बुद्धि तथा अहकार का सग छुडाते है। नवकार मे प्रासन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि की साधना है। उसके साथ यम-नियम-भी साधे जाते हैं। नियम प्रान्तर
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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