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________________ ४६ चरण का भग हो जापतो साधना पगु हो असफल हो जाती है। 'नमो' पद द्वारा प्रौदयिकभाव का निपेध तब तक करना चाहिए जब तक कि एक भी निपेत्र योग्य परभाव शेप हो । फिर जो अवशिष्ट रहे वही आत्मा है, अरिहत है एव शुद्ध स्वरूपी परमात्मा है। समता सामयिक की सिद्धि सम्यक् दृष्टि जीवो को विश्व की विविधता एव विचित्रता, सवेग एव वैराग्य की वृद्धि हेतु होती है तथा अहिंसा, सयम एव तपस्वरूप में के पालन मे उपकारक होती है । ____ जीवो की कर्मकृत विचित्रतायो को मैत्र्यादिभाव द्वारा सहना ही अहिंसा का बीज है एव अपने को प्राप्त होती सुखदु.ख अादि विविध अवस्थानो को समभाव से सहना ही क्रमश. सयम एव तप का बीज है। तपोधर्म को विकसित करने हेतु दु ख की भी उपयोगिता है सयम धर्म को विकसित करने हेतु सुख की भी उपयोगिता है । अहिसा के माराधन हेतु जीवो की विविधता भी उपयोगी है। जीवो को सहना ही अहिंसा है, सुखो को सहना ही सयम है एवं दुखो को सहना ही तप है । जीवो को सहन करने का अर्थ है कि शत्रु, मित्र अथवा उदासीन के प्रति तुल्यभावाभ्यास करना। सुख को महन करना अर्थात् सुख के समय विरक्त रहना एव दुखो को सहन करने का अर्थ है दुख के समय दैन्यभाव रहित होना। जीवो की विविधता में एकता का भाव अहिंसा को विकसित करता है सुखो मे दुख-वीजता का ज्ञान संयम को विकसित करता है एवं दु.खो मे मुख-बीजता का ज्ञान तपोगुण को विकसित करता है। । यदि दु ख मात्र को समझपूर्वक भोगा जाय तो वह सुख
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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