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________________ 'नमो' पद से शान्ति, तुष्टि एवं पुष्टि विपयो के राग से होती अशान्ति 'नमो' पद के जाप से टलती है । 'नमो' पद के जाप द्वारा क्षुद्र विपयो के राग के स्थान पर परम परमेष्ठियो के प्रति रागभाव जागृत होता है । परमेष्ठियो के प्रति भक्तिराग विषयो के राग से उत्पन्न होती अशान्ति को टालता है तथा शान्ति को प्रदान करता है। भोजन द्वारा क्षुधा शान्त होने के साथ ही जैसे शरीर मे आरोग्य तथा बल का अनुभव होता है वैसे ही 'नमो' पद के रटरण से विषयाभिलाषा टलने के साथ ही आत्मा को तुष्टि तथा पुष्टि मिलती है। - 'नमो' पद मे भक्ति, वैराग्य तथा ज्ञान तीनो एक साथ .. स्थित है । भक्ति अर्थात् प्रेम, वैराग्य अर्थात् विषयो से विमु खता तथा ज्ञान अर्थात् स्वरूप का बोध । स्वरूप के बोध से बल मिलता है जो पुष्टि के स्थान पर है। भक्ति से प्रेम जागृत होता है जो तुष्टि के स्थान पर है तथा वैराग्य से विषय-विम्खता होती है जो शान्ति स्वरूप है। इस प्रकार 'नमो' पद का जाप आध्यात्मिक 'शान्ति' आध्यात्मिक 'तुष्टि' तथा आध्यात्मिक 'पुष्टि' का कारण बनता है। 'नमो' पद का जाप चन्दन की भांति 'शीतलता' शक्कर की भाति 'मधुरता' तथा कचन की भांति 'शुद्धता' समर्पित करता है। शीतलता शान्तिकर है, मधुरता तुष्टिकर है तथा शुद्धता पुष्टिकर है। 'नमो' पद द्वारा विषयो से विरसता तथा परमेष्ठियो मे सरसता का भाव अभ्यस्त होता है । पांच विषय ही ससार है तथा पचपरमेष्ठि ही मोक्ष है। 'नमो' पद विषयो का विस्मरण करवाता है तथा निर्विषयीनिर्विकारी आत्मा का स्मरण करवाता है ।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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