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________________ अर्थात्--"भक्ति एक प्रकार का ज्ञान है" कि जिसमें आराध्यतत्त्व की विशेषता का ग्रहण होता है। ' इदमित्थमेव' । 'अयमेव परमार्थ.' अर्थात्--'यह वस्तु ऐसी ही है अथवा यही एक परमार्थ है। इस प्रकार का ज्ञान श्रद्धा कहलाती है एव उसमे आराधक की निष्ठा की प्रशसा है। साध्य एवं साधन में निष्ठा श्रद्धा तथा भक्ति का पाराधक मे होना आवश्यक है फिर. भी दोनो मे जो अन्तर है वह इनके ज्ञान मे है। श्रद्धालु का ज्ञान साधना मे निष्ठा उत्पन्न करता है। भक्तिमान का ज्ञान साध्य मे निष्ठा उत्पन्न करता है। साध्य की श्रेष्ठता का ज्ञान भक्तिवर्द्धक बनता है एव साधना की श्रेष्ठता का ज्ञान श्रद्धावर्द्धक बनता है। श्री नमस्कार मंत्र में साध्य ही सर्वश्रेष्ठ होने से वह सर्वोत्तम भक्ति का उत्पादक है एव साधन सर्वश्रेष्ठ होने से वह सर्वोत्तम श्रद्धा को उत्पन्न करता है । सर्वोत्तम श्रद्धा एवं सर्वोत्तम भक्ति से सम्पन्न क्रिया निशंक सर्वोत्तम फल को प्रदान करती है। भक्ति उत्पन्न होने में प्रमुख अनुग्रह प्रभु का है। इस अनुग्रह को करने की शक्ति अन्य किसी में भी नही होने से भव्य जीवो के लिए प्रभू ही एक सेव्य, आराध्य एव उपास्य हैं साथ ही एक उनकी ही आज्ञा पालन करने योग्य होती है ऐसी निष्ठा प्राप्त होती है एव इसी का नाम भक्ति है। - आज्ञा का पालन करने योग्य "मैं स्वय ही हूँ" ऐसी निष्ठा श्रद्धा है । इस प्रकार श्रद्धा एव भक्ति दोनो के मिलने से जीव की मुक्तिरूपी कार्य-सिद्धि होती है। श्री नमस्कार मन्त्र इन दोनो वस्तुओं की पूर्ति करने वाला होने से भव्य जीवो को प्रारयो से भी प्यारा है एवं प्रत्येक श्वास मे सौ बार
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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