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________________ तथा उनके मूल चारो कषायों का अन्त कर परमेष्ठि नमस्कार पचम गति को प्रदान करता है । धर्म प्राप्ति का द्वार ससार असार है। उसमे निहित दुख को तो सभी कोई असार मानते है पर ज्ञानी पुरुष ससार के सुख को भी असार मानते है । इसका कारण यह है कि सुख के लिए पाप होता है तथा पाप के परिणाम स्वरूप दुख मिलता है । अत दुख नही पर पाप असार है तथा सुख सार नही पर उसका कारण पुण्य ही सार है-ऐसी बुद्धि वाले को ही श्री अरिहंतादि की शरण प्रिय लगती है। ___ भगवान की शरण स्वीकार करने हेतु मुख्य दो ही उपाय हैं-एक तो पाप को-दुष्कृत को असार मानना एव दूसरा धर्म को सुकृत को सार मानना । ऐसी मान्यता वाला ही सर्वथा पापरहित तथा धर्मसहित श्री अरिहतादि चार का माहात्म्य समझ सकता है एव उनको भाव पूर्वक नमस्कार कर सकता है। जिस प्रकार सोने के आभूपणो मे सोना ही मुख्य कारण है वैसे ही अर्थ, काम एव मोक्ष प्राप्ति मे धर्म ही मुख्य कारण है। अर्थ, काम तथा मोक्ष सभी धर्म रूपी सुवर्ण के भिन्न-भिन्न रूप है । नमस्कार भाव से उस धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत होता है । अत परमेष्ठि नमस्कार धर्म प्राप्ति का द्वार है। पाप का पश्चात्ताप एवं पुण्य का प्रमोद पाप कार्य कर जिसको वास्तविक पश्चात्ताप हो उसका पाप वढने से रुक जाता है। धर्म कार्य कर जिसको हर्प नही
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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