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________________ ६४ मनोरथ सम्यक् दष्टि जीव सदा के लिए वांछित करता है। इस विपय मे कहा है कि-- दशमे अधिकारे महामत्र नवकार । मनथी नचि मूको शिवसुख फल सहकार, एह जपतां जाये दुर्गति दोष विकार । सुपरे ऐ समरो, चौद पूरबनो सार ॥शा जन्मान्तर जातां जो पामे नवकार । तो पातिक गाली, पामें सुरअवतार । ऐ नवपद सरिखो मत्र न कोई सार । इह भव ने परभवे सुख सम्पत्ति दातार ॥२॥ जुओ भील भीलडी, राजा राणी थाय । नव पद महिमाथी राजसिंह महाराय । राणी रत्नावती बेहु पाम्या छे सुर भोग, एक भव पछी लेशे शिववधू संजोग ||३|| श्रीमती ने ए वली मत्र फल्यो तत्काल । फणिधर फीटी ने प्रकट थई फूलमाल, शिव कुमरे जोगी सोवन पुरिषो कीध । एम एणे मत्रे काज घणाना सिद्ध |४|| उपा० श्री विनयविजयजी महाराज (पुण्य प्रकाश का स्तवन ढाल १०) शुभं भवतु सर्वेषाम् ।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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