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________________ है तथा ये तीनो तत्त्व परम उपकारक है ऐसा हार्दिक स्वीकरण है। जिससे सभी कुछ शुभ मिला है, मिल रहा है तथा मिलने वाला है उसको याद करना तथा उसके प्रति नम्र भाव वारण करने का ही दूसरा नाम कृतज्ञता गुण है। कृतज्ञता गुण एक प्रकार की ऋण मुक्ति की भावना भी है। परोपकार गुण मुक्तिमार्ग मे ऋणमुक्ति की भावना से उत्पन्न हुआ शुभ भाव है। ऋणमुक्ति तथा कर्ममुक्ति एक ही सिक्के के दो पहलू है। अव्याबाघ सुखस्वरूप मोक्ष मे देना ही है लेना कुछ भी नहीं है । ससार मे तो केवल लेना ही है पर देना कुछ भी नहीं। लेने की क्रिया मे से छटने का उपाय, जहां तक कुछ भी लेना नही तथा केवल देना ही है वैसा मोक्ष प्राप्त करना है । उस मोक्ष को प्राप्त करने का अनन्य साधन एक नमस्कार भाव या कृतज्ञता गुरण हैं। याग्य का नमस्कार करने वाले का विकास तथा नमस्कार नहीं करने वाले का विनाश ही इस ससार का अविचल नियम है। दान रुचि भी नमस्कार की ही एक रुचि है । नमस्कार सर्वश्रेष्ठ पुरुषो को एव सर्वश्रेष्ठ सद्गुणो को सर्वश्रेष्ठ दान है। दान रुचि के बिना दानादि गुण जैसे गुण नही बन सकते वैसे ही नमस्कार रुचि के विना पुण्य के कार्य भी पुण्यानुबन्धी पुण्य स्वरूप नहीं बन सकते हैं । नम्रता का मूल कृतज्ञता, कृतज्ञता का बीज परोपकार तथा परोपकार का बीज जगत-स्वभाव है । विश्व का धारण, पालन, पोषण परोपकार से ही हो रहा है । कोई भी क्षरण ऐसा नहीं है कि जिसमे एक जीव को दूसरे जीव की तरफ से उपग्रह-उपकार न होता हो । इस सम्बन्ध मे कहा है कि - तरुवर सरवर संतजन, चोथा बरसत मेह । ___ - - परमारथ के कारणे, चारों धरिया देह ।।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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