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________________ खमामि सव्व जीवाणं सभी जीवो मे सत्तारूप में जिनस्वरूप होते हुए भी उसे स्वरूप मे नही देखने रूप अपराध हेतु मैं क्षमायाचना करता हूँ। उन अपराधो हेतु क्षमायाचना करने से उस स्वरूप को देखने वाले उपकारियो को किया जाने वाला नमस्कार तात्त्विक होता है। नमामि सव्व जिणाणं । खमामि सव्व-जीवाणं । शब्दार्थ-सभी जिनो को मैं नमस्कार करता हूँ सभी जीवो से मैं क्षमायाचना करता हूँ। ___ भावार्थ-नमस्कार करता हूँ। अर्थात् उनके उपकार को स्वीकार करता हूँ । क्षमायाचना करता हूँ अर्थात् मेरे अपकार को स्वीकार करता हूँ। मुझ पर हुए, होरहे एव होने वाले सभी उपकारियो के उपकार को मैं कृतज्ञभाव से स्वीकार करता हूँ। मुझ से हुए, हो रहे तथा होने वाले सभी अपकारो को मैं सरलभाव से स्वीकार करता हूँ एव फिर नहीं करने के भाव से क्षमायाचना करता हूँ। बड़े से बड़ा उपकार उनका है जो अपने जिनस्वरूप को देख रहे हैं तथा उसकी प्राप्ति तक अपन अपराधो को क्षमा कर रहे हैं। उनकी करुणा, उनकी मैत्री, उनका प्रमोद तथा उनका माध्यस्थ्य मेरे जिनस्वरूप को प्राप्ति मे उपकारक है। इसलिए मैं उनकी स्तुति करता हूँ तथा मुझ मे सभी जीवो के प्रति चारो भाव प्रकटित हो ऐसी प्रार्थना करता हूं। उससे विपरीत मेरे भावो की मैं निन्दा करता है, गर्हणा करता हैं एवं सभी जीवो के समक्ष तदर्थ क्षमा मांगता हूँ। सभी जीवो के समक्ष उनके प्रति आचरित अपराधो हेतु क्षमायाचना करता हूँ। सभी जीवो के प्रच्छन्न जिनस्वरूप को देवकर उनके प्रति मैत्री, प्रमोद, कारुण्य एव माध्यस्थ्य भाव को विकसित करता हूँ।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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