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________________ एव स्थिर कर देता है। इस प्रकार बुद्धि को सूक्ष्म, शुद्ध एव स्थिर करने का सामर्थ्य नमस्कार में निहित है। नमस्कार में अहकार के विरुद्ध नम्रता है, प्रमाद के बिन्द्ध पुरुपार्थ एव हृदय की कठोरता के विरुद्ध कोमलता है । नमस्कार से एक ओर मलिन वासना व दूसरी ओर चित्त की चचलता दूर होने से जान का घोर यावरण महकार टल जाता है। नमस्कार की क्रिया श्रद्धा, विश्वाम एव एकाग्रता बढाती है। श्रद्धा से तीव्रता, विश्वास से सूक्ष्मता एव एकाग्रता से बुद्धि मे स्थैर्य गुण बढ़ता है। नमस्कार से साधक का मन परम तत्त्व मे लगता है एक बदले मे परम तत्त्व से बुद्धि प्रकाशित होती है। उस प्रकाश से वृद्धि के अनेक दोष जैसे मदता, सकुचितता, सशय-युक्तता एव मिथ्याभिमानिता आदि साथ नष्ट होते है । नमस्कार मंत्र सिद्ध मंत्र है नमस्कार एक मत्र हैं एवं मत्र का प्रभाव मन पर पडता है । मन से मानने का एव बुद्धि से जानने का काम होता है। मत्र से मन एव बुद्धि दोनो परम-तत्त्व को समर्पित हो जाते है। श्रद्धा का स्थान मन है एव विश्वास का स्थान बुद्धि है। ये दोनो जव प्रभु को ममपित हो जाते हैं तब उन दोनो के दोष जल कर भस्मीभूत हो जाते है। बुद्धि स्वार्थांधता के कारण मद, कामावता के कारण कुवुद्धि, लोभान्धता के कारण दुर्वृद्धि, क्रोधान्धता के कारण सशयी, मानान्धता के कारण मिथ्या एव कृपणाधता के कारण अतिशय सकुचित हो जाती है । नमस्कार रूपी विद्य त जब चित्ताकाश मे कौधती है तब स्वार्थ से लगाकर काम, क्रोध, लोभ, मान, माया एव दर्प आदि सभी दोष दग्ध हो जाते है एव
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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