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________________ भावार्थ-उपेय का अर्थ है साध्य । साध्य की मधुरता होने से साधन मे प्रवृत्त हुए तपस्वी ज्ञानियो को तप के कष्ट मे भी नित्य आनन्द की वृद्धि का अनुभव होता है। __ बाह्य कष्ट मे भी आन्तरिक आनन्द अनुभव करने की कुजी श्री नमस्कार मन्त्र में से प्राप्त होती है क्योकि वह शुद्ध ज्ञान एव आनन्दमय सच्चिदानन्द स्वरूप के सन्मुख होन की प्रक्रिया है । देहादि से भिन्न-भिन्न शुद्ध प्रात्म-स्वरूप की सभी भावना करने वाली प्रात्मा मे तीन वैराग्य, उदासीनता, प्रतिकूलता में भी सहनशीलता एव धैर्य आदि आवश्यक सद्गुण सहज प्रकट होते हैं । कहा है कि धनार्थिनां यथा नास्ति, शीततापादिदुःसहम् । तथा भवविरक्तानां, तत्त्वज्ञानार्थिनामपि । भावार्थ-धनार्थी जीवो के लिए जैसे शीततापादि के कष्ट दु सह नही होते वैसे ही तत्त्वज्ञान के अर्थी जीवो एव भव से विरक्त महात्माओ को भी उस मार्ग मे पाती प्रतिकूलताएँ एव कष्ट सहन करने दु सह नहीं होते हैं । श्री नमस्कार मत्र से शुद्ध चैतन्य स्वभाव के साथ एकत्व साधा जाता है एव चैतन्य से भिन्न पर पदार्थों एव रागादि भावो के प्रति उदासीनता समायोजित की जाती है। वह श्री नमस्कार मत्र शुद्धात्म द्रव्य, शुद्धात्मगुरण एवं शुद्धात्म पर्याय के साथ एकत्व, उसकी साधना पर रुचि, बहुमान एव अन्तरग प्रीति उत्पन्न करवा कर प्रतिकूलताओ को सहन करने का वल प्रदान करता है । उस हेतु को लक्ष्य मे रख ज्यो-ज्यो उसका ( श्री नमस्कार मत्र का ) आराधन होता जाता है त्यो त्यो आत्मत्त्व के निकट जाने का एवं फलस्वरूप परमात्मत्त्व की साक्षात् अनुभूति करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। .
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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