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________________ होगा। जितना कम सत्य का पालन होगा उतनी ही जितेन्द्रियता कम होगी तथा काम, क्रोध एवं लोभ का बल अधिक होगा । नमस्कार से वाणी की कठोरता, मन की कृपणता एव वुद्धि की कृतज्ञता नष्ट होती है तथा क्रमश. कोमलता, उदारता एव कृतजना विकसित होती है। नमस्कार द्वारा मनोमय कोष की शुद्धि नमस्कार मे न्याय है, सत्य है, दान है एव सेवाभाव निहित है । न्याय मे क्षत्रियत्व है, सत्य है एव उसके बहुमान मे ब्रह्मज्ञान है । दान एव दया मे लक्ष्मी एव व्यापार की सार्थकता है, सेवा एव शुश्रूपा मे सतोष गुण की सीमा है । नमस्कार द्वारा क्षत्रियो का क्षत्रियत्व, ब्राह्मणो का ब्रह्मज्ञान, वंश्यो का दानगुण एव शूद्रो का सेवागुण एक साथ सार्थक होते हैं । समर्पण, प्रेम, परोपकार एव सेवा भाव हो मानवमन एव विकसित बुद्धि के सहजगुण है। ___मनुष्य जन्म को श्रेष्ठ बनाने वाली यदि कोई वस्तु है तो वह पवित्र बुद्धि है । जीव, देह एव प्राण तो प्राणी मात्र में हैं पर विकसित मन एम विकसित बुद्धि तो मात्र मनुष्यो मे ही है । सब कुछ हो पर सद्बुद्धि नही हो तो सब का दुरुपयोग हो दुर्गति होतो है । दूसरा कुछ भी नही हो पर यदि सद्बुद्धि ही हो तो उसके प्रभाव से सव कुछ प्राप्त हो जाता है । मानव मन मे अहकार एव आसक्ति ये दो बडे दोप है। दूसरो के गुण देखने से एव स्वयं के दोप देखने से ग्रहकार एवं आसक्ति नष्ट हो जाते हैं। नमस्कार दूसरो के गुण ग्रहण करने की एव स्वय के दोपो को दूर करने की क्रिया है । नमस्कार से सद्बुद्धि का विकास होता है एव सद्बुद्धि का विकास होने से सद्गति हस्तामलकवत् हो जाती है ।
SR No.010672
Book TitleMahamantra ki Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherMangal Prakashan Mandir
Publication Year1972
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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