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________________ 38 Pandit Jugal Kishor Mukhtar Yugveer" Personality and Achievernents जैसा कि मैं ऊपर कह चुकी हूं कि युगवीर जी की सबसे लोकप्रिय कविता मेरी भावना है, जिसे बच्चों से लेकर बूढ़े तक गुनगुनाते हैं। वस्तुतः मेरी भावना एक राष्ट्रीय कविता है। कवि का यह एक छोटा-सा काव्य मानव जीवन के लिए ऐसा रत्नदीप हैं जिसका प्रकाश सदा अक्षुण्ण बना रहेगा। कवि ने इसमें विश्व बंधुत्व, कृतज्ञता, न्यायप्रियता, सहनशीलता का सुंदर चित्रण किया है। राष्ट्रीयता का भावात्मक आधार धार्मिकता भी है। अध्यात्म एक ऐसा तत्व है जो राष्ट्र में सुख शांति और समृद्धि उत्पन्न करता है। मुख्तार सा. ने मेरी भावना में न केवल मनुष्यों अपितु प्राणी मात्र के कल्याण की बात की है-मैत्री भाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे..... मुख्तार सा. के मौलिक निबंधों में राष्ट्र के प्रति अगाधप्रेम की धारा दिखाई देती है। अपने एक लेख में उन्होंने लिखा है-"हमें पशुबल का उत्तर आत्मबल के द्वारा सहनशीलता से देना होगा और इसी में हमारी विजय है। हमें क्रोध को क्षमा से, अन्याय को न्याय से, अशांति को शांति से, और द्वेष को प्रेम से जीतना चाहिये। हमारा यह स्वतंत्रता का युद्ध एक धार्मिक युद्ध है वह किसी खास व्यक्ति अथवा जाति के साथ नहीं बल्कि उस शासन पद्धति के साथ है जिसे हम अपने लिए घातक और अपमानमूलक समझते हैं। हमें बरे कामों से जरूर नफरत होना चाहिए, परन्तु बुरे कामों को करने वालों से नहीं, उन्हें तो प्रेमपूर्वक हमें सन्मार्ग पर लाना है।" जैन धर्म अहिंसा प्रधान होने पर भी राष्ट्र के लिए बलिदान देने में कभी पीछे नहीं रहा है। भामाशाह और आशाशाह के अवदान को कैसे विस्मृत किया जा सकता है। आजादी के आंदोनल में (1857-1947) शहीद हुये अमरचंद बांठिया लाला हुकुमचन्द जैन, उदयचंद जैन, साबूलाल वैशाखियां को कैसे भुलाया जा सकता है। यहां तक कि भारत के संविधान के निर्माण में जैनों का योगदान रहा है। श्री रतनलाल मालवीय, श्री अजितप्रसाद जैन, श्री कुसुमकांत जैन आदि संविधान सभा के सदस्य थे। जैन पत्र-पत्रिकाओं ने भी आजादी के आंदोलन में महत्ती भूमिका निभायी थी।"
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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