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________________ पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व 37 करके पारस्परिक प्रेम, सद्भाव, विश्वास और सहयोग की भावनाओं को उत्पन्न करने का है। इसी से अन्तरंग शत्रुओं का नाश होकर देश में शांति और सुव्यवस्था की प्रतिष्ठा हो सकेगी और मिली हुई स्वतंत्रता स्थिर रह सकेगी। " मुख्तार साहब राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत एक महान् विभूति थे । उन्होंने जनता में देश भक्ति जाग्रत करने वाले अनेक निबंध लिखे, जिनका उद्देश्य समाज, देश, राष्ट्र में वैचारिक क्रांति करना था। समाज को स्वस्थ बनाकर उसकी विकृतियों का परिहार करना, आपका उद्देश्य था। उनके इन्हीं क्रांतिकारी, राष्ट्रीय और सामाजिक विचारों के कारण डॉ. नेमीचन्द शास्त्री ने ठीक ही कहा है ' वे केवल युग निर्माता ही नहीं, युग संस्थापक ही नहीं, अपितु युग युगान्तरों के संस्थापक हैं उनके द्वारा रचित विशाल वाङ्मय वर्तमान और भविष्य दोनों को प्रकाश देता रहेगा।" मुख्तार सा. भारत के उन देशभक्तों में से थे, जिन्होंने परतंत्रता के दुःख को समझा, स्वतंत्रता का मूल्य जाना और उस दिशा में निरंतर प्रयत्न करते रहे । मुख्तार सा. महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित रहे। गांधी जी जैसी देशभक्ति, सच्चरित्रता और जीवों के प्रति दया- करुणा का भाव अन्यत्र दुर्लभ है। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय से ही मुख्तार सा. का खादी पहनने का नियम था, साथ में वह चरखा भी कातने लगे थे। जब प्रथम बार गांधी जी गिरफ्तार हुए तो मुख्तार सा. ने नियम बना लिया कि जब तक महात्मा गांधी कारागार से मुक्त नहीं होंगे तब तक चरखा काते बिना भोजन ग्रहण नहीं करेंगे। उनका यह नियम चलता रहा तथा अब वे इतना सूत कात लेते थे जिससे उनके सारे कपड़े बन जाते थे। खादी भण्डार से सूत देकर ही वे कपड़े खरीदते थे, रुपयों से नहीं | सत्याग्रह आन्दोलन में जितने व्यक्ति भाग लेते हुए गिरफ्तार हो जाते मुख्तार सा. यथाशक्ति उनके परिवार वालों की तन मन और धन से मदद करते थे। 1' धनिक सम्बोधन' कविता में उन्होंने धनिकों की देशोद्धार के लिए धन देने की अपील की है। एक पद्य दृष्टव्य है 'भारतवर्ष तुम्हारा तुम हो भारत के सत्पुत्र उदार, फिर क्यों देश-विपत्ति न हरते करते इसका बेड़ा पार, पश्चिम के धनिकों को देखो, करते हैं वे क्या दिन रात और करो जापान देश के धनिकों पर कुछ दृष्टि निपात ।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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