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________________ Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugroer" Personality and Achievements है। कुन्द-कुन्द स्वामी की इस प्रवचन शैली पर आज तक किसी ने आक्षेप नहीं किया। पर आज निश्वयनय की अपेक्षा जो प्रवचन हो रहे हैं उनमें एकान्तवाद की झलक दिखती है। इसी कारण विरोध हो रहा है। जन-सामान्य तो विशेष प्रतिभा नहीं रखते, इसलिए सब सुनते रहते हैं पर विशेष विद्वान् एकान्तवाद का विरोध करते हैं। आदरणीय मुख्तार जी का मुझ पर विशेष प्रेम था और इसके कारण कई दुरुह स्रोत आदि की व्याख्या करने के लिए मुझे लिखते थे। "मरुदेवि स्वप्नावलि" ऐसा स्रोत है, जिसका अर्थ लिखने के लिए मुझे पत्र लिखा। मैंने संस्कृत टिप्पण देकर उसका हिन्दी अर्थ कर उनके पास भेजा, जिसे उन्होंने अनेकांत में प्रकाशित किया। "स्तुति विद्या" का अनुवाद प्रेरणाकर मुझसे लिखाया और उसे अपनी प्रस्तावना के साथ प्रकाशित किया। एक बार अनेकान्त के मुख पृष्ठ पर दधि विलोडने वाली गोपी का चित्र प्रकाशित किया, जिसे देखकर मैंने पुरुषार्थ सिद्धयुपाय के अंत में आये: एके नाकर्षन्ति श्लथयन्ति वस्तु तत्वमितरे ण। अन्तेन जयति जैनी नीति-मन्थान तंत्रमिव गोपी॥ इस श्लोक के आधार पर "जैनी नीति" नामक एक हिन्दी कविता लिखकर उनके पास भेजी थी। जिसे उन्होंने प्रसन्नता के साथ अनेकान्त पत्र में प्रकाशित किया था। मेरी संस्कृत कविताओं को भी अनेकान्त में बड़े प्रेम से प्रकाशित करते थे। फलस्वरुप मेरे द्वारा लिखित सामायिक पाठ जिसमें विधि पूर्वक छह अंगों का वर्णन था, आपने बड़ी प्रसन्नता से अनेकान्त में छापा था। साथ ही लिखा था कि मुझे गौरव हैं कि आज के विद्वान् भी पूर्वाचार्यों की तरह संस्कृत में रचना करते हैं। आपने युक्त्यनुशासन, स्वयंभूस्त्रोत आदि कुछ ग्रंथों का अनुवाद कर पृथक्-पृथक् पुस्तकों में छपाया है। आपके द्वारा लिखित 'मेरी भावना' का जितना आदर देश में हुआ है उतना शायद किसी दूसरी कृति का हुआ हो।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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