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________________ 12 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements अंग मात्र ही मुख्तार सा. के सम्मान की निशानी है, आज मैं बड़ा हर्षित हो रहा हूँ, श्रद्धेय उपाध्याय जी की कृपा से उनका पुण्य स्मरण हो रहा है केवल उनके पुण्य स्मरण के लिए ही मैं यहां इस आयु में भटक कर आया हूं। मेरा स्वास्थ्य अनुकूल नहीं रहता, अतः अब सगोष्ठियों, साहित्यिक चर्चाओं में भाग लेने की क्षमता घट गई है। श्रद्धेय उपाध्याय जी को विद्वानों से बड़ा अनुराग है विद्वानो को सम्मानित और पुरस्कृत करने के लिए वे समाज को प्रेरित करते रहते हैं। स्व महेन्द्र कुमार जी न्यायाचार्य का अभिनंदन ग्रंथ, प्रस्तुत कासलीवाल का अभिनदन ग्रंथ तथा स्व नेमिचन्द्र जी ज्योतिषाचार्य के अभिनंदन ग्रंथ तैयार कराने में आपका भरपूर सहयोग और शुभाषीर्वाद समाज को प्रेरित करता रहता है। तिलोय पण्णति जैसे महान् ग्रंथ के पुनः प्रकाशन का श्रेय आपको ही जाता है। आगे भी कई अन्य ग्रंथों का पुनर्मुद्रण कराने के लिए आप श्रेष्ठियों को उनके धन के सदुपयोग के लिए प्रेरणा देते रहते हैं। मुख्तार सा. संपादन कला के विशिष्ट पारखी थे, वे जो लिखते थे ऐसा सोच समझकर लिखते थे कि उनकी वाक्यावली से एक शब्द भी घटायाबढाया नहीं जा सकता था। जैसे डॉ. ए एन उपाध्ये की प्रस्तावनाएं मूल ग्रंथों से भी अधिक महनीय और पठनीय हैं उसी तरह मुख्तार सा की भूमिकाएं (प्रस्तावनाए) आदि अत्यधिक शोध परक गंभीर अध्ययन को द्योतक हैं। डॉ. उपाध्ये ने उनके ग्रंथों की प्रस्तावनाओ की बड़ी प्रशंसा की है और किसी संशयास्पद चर्चा में मुख्तार सा से विचार-विमर्श करके ही अतिम निर्णय लिखा करते थे। मुख्तार सा और प्रेमी जी दोनों ही विद्वान् अपने समय के महान ज्ञान स्तम्भ थे। उन्होंने अपनी जो वसीयत लिखी थी वह इतिहास की महत्वपूर्ण धरोहर है, ऐसी वसीयतें दो चार ही मिलेंगी। अपनी वसीयत में कानून के मुद्दों को प्रखरता से उजाकर किया ही है क्योंकि वे स्वयं वकील थे पर उसमें साहित्यानुराग और धार्मिक प्रभावना एवं शोध शैली को बड़े ही प्रभावी ढंग से अंकित किया है वह अनेकान्त के पुराने अंक में देखी जा सकती है। इस प्रकरण में नेपोलियन बोनापार्ट की वसीयत बड़े ही ऐतिहासिक महत्व की है, जिसके आधार पर पं जवाहरलाल नेहरू ने अपनी वसीयत लिखी है?
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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