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________________ 299 प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व जिसका एक समाजसेवी में होना आवश्यक है, वे मरते दम तक समाज को सेवा करने में समर्थ हो सके। ऐसे परोपकारी समाजसेवी का समाज जितना गुणगान करे और आभार प्रकट करे, वह सब थोड़ा है। उनकी याद में कोई अच्छा स्मारक बनाया जाना चाहिये था - ऐसा मुख्तार जी सोचते थे। छठे निबन्ध में राजगृह के वीरशासन महोत्सव की झाँकी प्रस्तुत की गयी है। कहा गया है कि इस महोत्सव का सम्पूर्ण खर्च बाबू छोटेलाल जी जैन रईस कलकत्ता वालों ने वहन किया था। विपुलाचल पर्वत पर आयोजित इस महोत्सव के प्रति समाज का अच्छा उत्साह था। 'ऊँचा झंडा जिन शासन का, परम अहिंसा दिग्दर्शन का' - इस गायन के साथ इस महोत्सव के झंडाभिवादन की रस्म पं कैलाशचन्द्र जी शास्त्री ने पूर्ण की थी। पंडिता चंदाबाई, प फूलचन्द्र जी, प दरवारीलाल जी कोठिया, पं परमानन्द शास्त्री आदि उस महोत्सव में ग्यारह विद्वान आये थे। यहाँ सम्पन्न हुई पूजा को सुनकर श्रोताओं ने कहा था कि पूजा पढी जाय तो इसी तरह पढ़ी जाय। सातवें निबन्ध में १ अक्टूबर से ४ नवम्बर तक कलकत्ते में आयोजित वीरशासन के सार्धद्वयसहस्राब्दि महोत्सव का वर्णन है। मुख्तार जी ने लिखा है - कलकत्ते में इसके पूर्व ऐसा महोत्सव नहीं हुआ। जुलूस १११ मील लम्बा था। लाखों जनता थी। झण्डाभिवादन सर सेठ हुकमचन्द्रजी ने किया था। वीरशासन के प्रचार तथा शोध-खोज के लिए सबसे बड़ी राशि ७१ हजार की सेठ बलदेवदास जी ने और ५१-५१ हजार की राशि क्रमश: बाबू छोटेलाल जी, साहू शान्तिप्रसाद जी और सेठ दयाराम जी पोतदार ने दी थी। बाबू छोटेलाल जी ने तो वीर शासन के लिए अपना जीवन समर्पित किया था, जिसकी तुलना में लाखों-करोड़ों का दान भी कोई चीज नहीं है। उनका जितना आभार माना जाय और धन्यवाद दिया जाय, वह सब थोड़ा है। इस महोत्सव में देश के अनेक बड़े विद्वान पधारे थे। इन निबन्धों में मुख्तार जी ने तत्कालीन सामाजिक धार्मिक-स्नेह दर्शाया है। ___ "श्री दादी जी" नामक आठवें निबन्ध में मुख्तार जी ने अपने पिता की मामी का स्मरण किया है। वे नानौता (सहारनपुर) के रईस स्व. लाला सुन्दर लाल जी की धर्मपत्नी थी। मुख्तार जी के अनुसार विवाह के बाद वे
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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