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________________ 263 - पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व एक ने किसी उच्च अधिकारी के दबाव से (न चाहते हुये), स्टाक जब्ती या इनकमटैक्स (आयकर) के भय से दो लाख रुपये का अन्न दान किया हो। दूसरे ने इस आशा से दान दिया कि गवर्नर आदि प्रसन्न होकर रायबहादुर जैसी उच्ची पदवी प्रदान करेंगे। तीसरे ने किसी अन्य दानी से ईर्ष्या करके प्रतिद्वन्द्वतावश अधिक दान दिया। चौथे ने वास्तव में दया-भाव के वशीभूत अकालपीड़ितों को नि:स्वार्थ भाव से अन्नदान किया। इस प्रकार लेखक बार-बार अनेकों उदाहरणों द्वारा दान की श्रेष्ठता को समझाने का भरसक प्रयत्न करते हैं। विभिन्न दृष्टियों से ही इसे देखना होगा। पाठ-4. बड़ा और छोटा दानी कौन तत्त्वार्थसूत्र में सातवें अध्याय में आयी दान की परिभाषा अनुग्रहार्थ स्वस्यातिसर्गो दानम् ॥३८॥ विधि द्रव्य दातृ पात्र-विशेषातद्विशेषः ॥३९॥ अनुग्रह के लिए स्व-पर उपकार वास्ते जो अपने धनादिक का दान (त्याग) करता है उसे 'दान' कहते हैं। उस दान में विधि, द्रव्य, दाता और पात्र के विशेष से विशेषता आती है। इस बात को समझाने के लिए मुख्तार जी निम्न उदाहरण देते हैंपहले सेठ डालचन्द जो पांच लाख रुपये एक विद्या संस्थान को मात्र इसलिए देते हैं कि वे समाज में विश्वास एवं प्रेम सम्मान के पात्र बनें। 2. दूसरे सेठ ताराचंद ब्लेकमनी (कालाधन) रखे हुए हैं, वे सरकारी छापे के डर से 'गांधी मीमोरियल फंड' को पांच लाख का दान देते हैं।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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