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________________ 261 - 4 जुगलकिसोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व कि एक ही लाइन में छोटे और बड़े होने का गुणधर्म विद्यमान है। जबकि उस लाइन को घटाया बढ़ाया नहीं गया। एक ही वस्तु में दो विरूद्ध प्रतीत होने वाले धर्म एक ही समय में कैसे रह सकते हैं? इसको समझाने की इतनी अच्छी और सरल दृष्टान्त विधि का प्रयोग करके मुख्तार जी वास्तव में इस माध्यम से मात्र बच्चों को ही नहीं वरन् बड़ों को भी समझाना चाहते हैं, जो अनेकान्तवाद को छल और स्याद्वाद को संशयवाद कहकर नकारना चाहते हैं। पाठ-2. बड़े से छोटा और छोटे से बड़ा इस द्वितीय पाठ के माध्यम से मुख्तार जी 'ही' और 'भी' के कथन को उन्हीं लाइनों के द्वारा (उदाहरणों से) समझाने का प्रयत्न करते हैं। इसमें अध्यापक विद्यार्थियों को समझाते हैं कि बिना अपेक्षा भेद लगाये किसी लाइन (वस्तु) को छोटी ही या बड़ी ही कहना एकान्त है। उससे भी छोटी वाली लाइन पर दृष्टि नहीं डाली और यदि बड़ी ही कहता है तो, उसने उससे भी बड़ी लाइन पर दृष्टि नहीं डाली। अत: यह समग्र दृष्टिकोण न होने के कारण एकांत हुआ सम्यग्दृष्टि या अनेकान्तदृष्टि वाला उन लाइनों या वस्तुओं को अपेक्षा से छोटी-बड़ी कहेगा। या फिर अपेक्षा न लगाने पर 'भी' का प्रयोग करेगा। पाठ-3. बड़ा दानी कौन? दान की सर्वत्र चर्चा रहती है। बड़े-बड़े दानियों की महिमा गायी जाती है। परन्तु वास्तव में बड़ा दानी कौन? इस बात पर विद्यार्थियों के इस सहजसामान्य उत्तर को - "कि लाखों रू. का दान करने वाला सबसे बड़ा दानी' सुनकर मुख्तार जी ने अध्यापक के माध्यम से दानी-दान के तीन महत्वपूर्ण तथ्य निकाले 1. लाख रू. से कम अर्थात् दो-पाँच हजार रू. का दान करने वला क्या बड़ा दानी नहीं है। 2. 'लाखों रूपये का दान करने वाले जो समान रकम के दानी हैं क्या वे परस्पर समान दानी हैं?
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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