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________________ पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एव कृतित्व 239 इसी क्रममें योगिराज कुन्दकुन्द का स्मरण श्रवणबेलगोला के शिलालेखों के आधार पर किया है और बतलाया है कि आचार्यकुन्दकुन्द श्रीचन्द्रगुप्त मुनिराज के वंश में उत्पन्न हुये थे तथा दीक्षा समय का नाम पद्मनन्दी था। सत्संयम के प्रसाद से उन्हें चारणऋद्धि प्राप्त थी, जिसके कारण वे पृथ्वी से चार अङ्गल ऊपर आकाश में गमन करते थे। पुनः तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता आचार्य उमास्वामी का स्मरण नगरताल्लुक और श्रवणबेलगोल के शिलालेखों के आधार पर किया है। उपर्युक्त आचार्यों का स्तुतिपूर्वक स्मरण करने के पश्चात् श्री मुख्तार सा. ने अपने अनन्य आराध्य आचार्यसमन्तभद्र का विस्तार से स्मरण किया है। आचार्य समन्तभद्र के इस विस्तारपूर्वक विवेचन से मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि इनके पूर्व में जिन आचार्यों का उल्लेख किया गया है वह आचार्य समन्तभद्र पर प्रकाश डालने की पूर्व भूमिका थी और परवर्ती जिन आचार्यों पर प्रकाश डाला गया है वह आचार्य-परम्परा की स्तुति का निर्वाह मात्र है। क्योंकि पं. जुगलकिशोर मुख्तार आचार्य समन्तभद्र के अनन्य भक्त हैं, इसीलिये उन्होंने समन्तभद्र रचित ग्रन्थों पर विस्तृत हिन्दी भाष्य लिखे हैं और उनके ग्रन्थों के मर्म को जिस श्रद्धा-भक्ति के साथ उद्घाटित किया है वह बेजोड़ है। समन्तभद्रीय ग्रन्थो का भाष्य लिखते समय श्री मुख्तार सा. ने कोरा पाण्डित्य-प्रदर्शन नहीं किया है, अपितु उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति को भी प्रकट किया है, जिससे आचार्य समन्तभद्र के प्रति उनका विशेष अनुराग झलकता है। सत्साधु-स्मरण-मङ्गलपाठ के कुल 74 पृष्ठों में से 27 पृष्ठ एवं 142 पद्यों में 54 पद्य मात्र आचार्य समन्तभद्र के परिचय एवं यशोगान में समर्पित हैं। इससे भी समन्तभद्र के प्रति उनका विशेष अनुराग दृष्टिगोचर होता है। 'स्वामि समन्तभद्र-स्मरण' शीर्षक को समन्तभद्र वन्दन, समन्तभद्रस्तवन, समन्तभद्र-अभिनन्दन, समन्तभद्र-कीर्तन, समन्तभद्र-प्रवचन, समन्तभद्र-प्रणयन, समन्तभद्र-वाणी, समन्तभद्र-भारती, समन्तभद्र-शासन, समन्तभद्र-माहात्म्य, समन्तभद्र-जयघोष, समन्तभद्र-विनिवेदन और समन्तभद्रइदिस्थापन- इन 13 उपशीर्षकों में विभाजित किया है। श्री मुख्तार सा. ने
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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