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________________ Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements 'परमसाधु-मुख-मुद्रा' शीर्षक के अन्तर्गत परम साधु स्वरूप भगवान् जिनेन्द्रदेव को क्रोध से रहित होने के कारण अताम्रनयनोत्पलत्व, काम से रहित होने के कारण कटाक्षशरमोक्षहीनत्त्व और विषाद एवं मद से रहित होने के कारण प्रहसितायमानत्व इन तीन विशेषणों से सम्बोधित किया है। तदनन्तर 'साधुवन्दन' के अन्तर्गत आचार्य कुन्दकुन्दकृत योगिभक्ति से एक प्राकृत गाथा उद्धृत की है, जिसमें भय, उपसर्ग, इन्द्रिय, परीषह, कषाय, राग, द्वेष, मोह तथा सुख और दुःख के विजेता मुनिराजों की वन्दना की गई है अर्थात् ये गुण जिस किसी भी साधु में विद्यमान हों उसे नमस्कार किया गया है। 238 इस प्रकार सामान्य रूप से सत्साधुओं के गुणों का स्मरण करने के पश्चात् नाम संकीर्तन पूर्वक सर्वप्रथम वीरप्रभु की वन्दना निम्न स्वरचित पद्य से की है - शुद्धि - शक्त्योः परां काष्ठां योऽवाप्य शान्तिरुत्तमाम् । देशयामास सद्धमं तं वीरं प्रणमाम्यहम ॥ अर्थात् जिन्होंने ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्मों के क्षय से आत्म शुद्धि, अन्तरायकर्म के क्षय से शक्ति की पराकाष्ठा तथा मोहनीय कर्म के क्षय से उत्तम शान्ति को प्राप्तकर धर्मका उपदेश दिया है ऐसे वीर प्रभु को मैं प्रणाम करता हूँ । इसी क्रममें श्री मुख्तार सा. ने स्वामी समन्तभद्र, आचार्य प्रभाचन्द्र, आचार्य हेमचन्द्र और आचार्य विद्यानन्द के ग्रन्थों से पद्यों को उद्धृत कर वीर प्रभु का सातिशय स्मरण किया है। वीरप्रभु का स्मरण करने के पश्चात् वीर प्रभु के समवसरण (धर्मसभा) को देखकर जिनका मान गल गया था ऐसे गौतम गणधर स्वामी का यशोगान किया है । तदनन्तर भद्रबाहु स्वामी, कसायपाहुड के रचयिता आचार्य गुणधर, महाकर्म प्रकृति - प्राभृत के उपदेष्टा आचार्य धरसेन और षट्खण्डागम के रचयिता एवं उनके शिष्यद्वय पुष्पदन्त भूतबली का स्मरण किया है।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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