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________________ 192 3. Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements प्रथम खंड के प्रथम अध्याय में (पृ. 22) उल्लेख है कि गौतमसंहिता देखकर इस संहिता के कथन की प्रतिज्ञा। एक स्थान पर 'जटिलकेश' विद्वान् का उल्लेख (पृ. 23) तीसरे खंड के पांचवे अध्याय में चौदहवें पध में उत्पातों के भेदों के वर्णन में एक विद्वान् ‘कुमार बिन्दु' का उल्लेख हुआ है जिन्होंने पांच खण्ड का कोई संहिता जैसा ग्रंथ बनाया है। "जैन हितैषी" के छठवें भाग में "दि. जैन ग्रन्थकर्ता और उनके ग्रन्थ" सूची प्रकाशित हुई है। उसमें कुमारबिन्दु की 'जिनसंहिता' का उल्लेख है। मुख्तार साहब का मत है कि ये कुमारबिन्दु भद्रबाहु श्रुतकेवली से पहले नहीं हुए। अस्तु। द्वादशांगश्रुत और श्रुतकेवली के स्वरूप का विचार करते हुए इन सभी कथनों पर से यह ग्रन्थ भद्रबाहु प्रणीत प्रतीत नहीं होता। इस ग्रन्थ के दूसरे खंड में, एक स्थान पर 'दारिद्रयोग' का वर्णन करते हुए, उन्हें साक्षात् राजा श्रेणिक से मिला दिया है और लिखा है कि - यह कथन भद्रबाहु मुनि ने राजाश्रेणिक के प्रश्न के उत्तर में किया है - (अध्याय 41, पद्य 65, 66, ग्रन्थ परीक्षा पृ. 24 में उद्धृत) विचारणीय तथ्य यह है कि भद्रबाहुश्रुतकेवली राजा श्रेणिक से लगभग 125 वर्ष पीछे हुए हैं। इसलिए उनका राजा श्रेणिक से साक्षात्कार कैसे संभव है। इससे ग्रन्थकर्ता का असत्य वक्तत्व और छल प्रमाणित होता है। संस्कृत साहित्य में बृहत्पाराशरी नामक ज्योतिष शास्त्र का विशालकाय ग्रन्थ प्रसिद्ध है। इस ग्रंथ के 31 वें अध्याय में 'दारिद्रयोग के वर्णन' में जो प्रथम पद्य दिया है। भद्रबाहु संहिता' में पद्यों के चरणों का उलटफेर कर असम्बद्धता प्रकट की है। इसके आगे नौ पद्य और इसी प्रकरण के दिए हैं। जो 'होरा' ग्रन्थ में प्राप्त होते हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि संहिता का यह सब प्रकरण 'बृहत्पाराशरी' से
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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