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________________ पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व इसी प्रकार दूसरे खंड में 1. केवल काल, 3. वास्तु लक्षण, 3. दिव्येन्दु संपदा, 4. चिन्ह, 5. और दिव्यौषधि - इन पांच अध्यायों का ज्योतिष से प्राय: कोई संबंध नहीं है। खंडों के नामकरण समुचित नहीं हैं। अध्यायों के नामकरण भी ठीक नहीं। जैसे तीसरे खंड में 'फल' नाम के अध्याय में कुछ स्वप्नों और ग्रहों के फल का वर्णन है। यदि इतने पर से ही इसका नाम 'फलाध्याय' हो सकता है तो इसके पूर्व के स्वप्नाध्याय को और ग्रहाचार प्रकरण के अनेक अध्यायों को फलाध्याय कहना चाहिए। क्योंकि वहाँ भी ऐसे ही विषय हैं। मंगलाचरण में 'अधुना' ( पृ 10) शब्द अप्रासंगिक है । प्रतिज्ञावाक्य में - संहिता का उद्देश्य वर्णों और आश्रमों की स्थिति का निरूपण है। 191 इस कथन से ग्रन्थ के तीसरे खण्ड का कोई संबंध नहीं है। खासकर 'ज्योतिष खण्ड ' बिल्कुल ही अलग प्रसंग है। वह वर्णाश्रम वाली संहिता का अंग कदापि नहीं हो सकता। 4 44 दूसरे खण्ड के प्रारम्भ में 'अथ उत्तरखंड प्रारभ्यते । ' अथ भद्रबाहुकृतनिमित्त ग्रन्थः निख्यते ।" इससे भी दूसरे खण्ड का अलग ग्रन्थ होना पाया जाता है। इस खण्ड के सभी अध्याय किसी एक रचनाकार की रचना नहीं प्रतीत होते। इसके 24-25 अध्यायों की शैली और अभिव्यक्ति दूसरे अध्यायों से भिन्न है। वे किसी एक द्वारा प्रणीत हैं, शेष अध्याय दूसरे रचनाकारों द्वारा प्रणीत हैं। यहाँ एक और विलक्षण बात दिखाई देती है कि 25 वें अध्याय तक कहीं कोई मंगलाचरण नहीं है किंतु 26 वें अध्याय के प्रारंभ में मंगलाचरण है। (पृ. 11 ) इस ग्रन्थ का संकलन बहुतकाल पीछे किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा हुआ है। श्रुतकेवली की परिधि से कोई भी ज्ञान बाहर नहीं होता। ऐसी स्थिति में उनके द्वारा रचित ग्रन्थ में विषय के स्पष्टीकरण के लिए किसी दूसरे के कथन उद्धृत करने की आवश्यकता आ पड़े, यह विचारणीय प्रश्न है। जैसे दूसरे खंड के 37 वें अध्याय में घोड़ों के लक्षण । वहाँ पद्य 126 में लिखा है कि ये लक्षण चन्द्रवाहन ने कहे हैं। 1. 2.
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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