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________________ पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवी 'व्यक्तित्व एवं कृतित्व 167 प्रस्तुत स्तोत्र में कवि अपने गुरु के प्रभाव को तिरोहित न कर सका, उनके प्रभाव से प्रतिवादी मूक हो गये। अन्त में उसने शक्ति सरस्वती सिद्धिसमृद्धि प्राप्ति हेतु कामना की है। शक्तिरनेकरूपा, यद् ध्यानतः स्फुरति विघ्नाः प्रयान्ति विलयं सुफलन्ति कामाः । मोहं त्यजन्ति मनुजाः स्वहितेऽनुरक्तः, भद्रं प्रयच्छतु मुनीन्द्र - समन्तभद्रः ॥ समन्तभद्र स्तोत्र की रचना वसंततिलका छंद व शान्त रस में की गई है। शब्दालंकारों का प्रयोग भी हुआ है। यथा दूसरे तीसरे छन्द में क्रमशः अनुप्रास का प्रयोग देखिए → सारस्वतं सकल- सिद्धि-गतं च यस्य । सर्वज्ञ - शासन-परीक्षण - लब्धकार्तिर - १० मुख्तार साहब की 'मदीया द्रव्यपूजा' एक भावप्रधान रचना है, जिसमें वीतरागी भगवान के समक्ष आत्मनिवेदन किया गया है कि प्रभो जल-चंदनादि द्रव्य मुझे शुद्ध प्रतीत नहीं होते हैं, अतः मैं किस प्रकार अष्ट द्रव्यों से आपकी आराधना करूँ, क्योंकि आप तो अष्टादश दोषों से रहित हैं, अतः कोई भी द्रव्य आपको इच्छित नहीं है नीरं कच्छप-मीन- भेक-कलितं, तज्जन्म - मृत्याकुलम् वत्सोष्ठिष्टमिदं पयश्च, कुसुमं घ्रातं सदा षट्पदैः । मिष्टान्नं च फलं च नाऽत्र घटितं यन्मक्षिकाऽस्पर्शितम् तत्किं देव! समर्पयेऽहमिति मब्बितं तु दोलायते ॥* प्रस्तुत रचना में मात्र चार पद्य है। उनमें शब्दों की गुम्फना और भावों की समायोजना से यह एक उच्चकोटि की रचना बन गई है। 'वीर जिन स्तवन' में छन्दों की संख्या मात्र 5 है, जिसमें कवि ने प्रमुख रुप से मोहादि जन्य कर्मों को जीतने वाले, एकान्त का खण्डन कर अनेकान्त का स्वरुप प्रतिपादित करने वाले वीर जिन की उपासन की गई है
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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