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________________ - 4 जुगलकिशोर मुखार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्प 185 भारती" में संकलित है। भाषा की दृष्टि से उन्हें संस्कृत और हिन्दी दो खण्डों में विभक्त किया जा सकता है। "संस्कृत का वाग्विलास खण्ड" मुख्य रूप से मुख्तार साहब की संस्कृत भाषा में निबद्ध रचनायें हैं, जिनकी संख्या 10 (दस) है। वीरजिन स्तवन नामक रचना में - 5, समन्तभद्र स्तोत्र में - 11, अमृतचन्द्रसूरि स्तुति में - 2, मदीयाद्रव्य पूजा में - 4, जैन आदर्श में - 10 तथा अनेकान्त जयघोष, स्तुतिविद्याप्रशंसा, सार्थक - जीवन, लोक में सुखी व वेश्यानृत्य स्तोत्र में - 1-1 (एक-एक) श्लोक द्वारा कवि ने अपने भावों को व्यक्तकर देववाणी की सेवा की है। इस प्रकार 10 रचनाओं में कुल 37 छंद हैं। समन्तभद्र स्तोत्र में मुख्तार साहब ने समन्तभद्रस्वामी को अपना गुरु मानकर स्तवन किया है तथा उन्हें भगवान् महावीर का श्रेष्ठ भक्त बतलाया श्री वर्द्धमान-वर भक्त-सुकर्मयोगी, सद्बोध-चारुचरिताऽनषवाक्-स्वरूपी। स्याद्वाद-तीर्थजल-पूत-समस्त-गात्र: जीयात्स पूज्य-गुरुदेव-समन्तभद्रः।। आचार्य समन्तभद्रस्वामी ने स्वयं वर्द्धमान-तीर्थकर को नमस्कार किया है। यथा नमः श्रीवर्द्धमानाय निषूतकलिलात्मने। सालोकानां त्रिलोकानां यद्विद्या दर्पणायते । ऐसा प्रतीत होता है कि कवि मुख्तार जी ने उक्त मंगलाचरण श्लोक का आधार लेकर ही अपने उक्त काव्य को निर्मित किया है, क्योंकि उसमें रत्नकरण्ड श्रावकाचार के मंगलाचरण जैसी ही समानतायें दृष्टिगोचर होती हैं। इतना ही नहीं वे अपने गुरु समन्तभद्र को दैवज्ञ, मांत्रिक, तांत्रिक से उत्कृष्ट पूर्ण सारस्वत चाग्सिद्धि प्राप्त और महावाद विजेताओं का अधीश्वर मानते हैं तथा कहते हैं कि सिद्ध सारस्वत होने के कारण जन सामान्य आपकी
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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