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________________ - 156 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements इसी प्रकार कवि युगवीर की कविता में ज्ञान का प्रकाश, धर्म, समाज तथा राष्ट्रोद्धार की भावना सर्वत्र दिखाई देती है वे सभी को समानता की दृष्टि से देखते हैं। इसी से मानव अपने स्वरूप को समझेगा और सत्य पथ का प्रणेता बनेगा। जिस तरह गाड़ी में दोनों पहियों का होना जरुरी है एक पहिए से गाड़ी नहीं चल सकती, इसी प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र इन सभी का मानव समाज में होना जरूरी है ये सभी अपने मानव धर्म का पालन करके मानव समाज को अग्रसर करते हैं। कवि "युगवीर" जी ने "उपालम्भ और आह्वान" कविता में इन्द्र का आह्वान करके इन्द्र को राष्ट्र पर हो रहे अत्याचारों के संबंध में उलाहना दिया। उन्होंने इन्द्रदेव को महान यशस्वी, पूजनीय कहकर ये उलाहना दिया है कि जब तुम्हें भारतवासी बुलाते थे तो तुम उनकी सहायता के लिए इस पृथ्वी पर आते हो लेकिन अब इस पृथ्वी पर कितनी विपत्तियाँ आ रही हैं सभी आपका आह्वान कर रहे हैं तो भी राष्ट्र पर ध्यान नहीं देते - "भारत का क्या ध्यान तुम्हें अब तक नहीं आया? हुआ नहीं क्या ज्ञान, यहाँ दुःख कैसा छाया? विषयों में या लीन हुए सब धर्म भुलाया? नहीं रही पर्वाह किसी की, प्रेम नसाया?" भारत पर सकट के बादल मंडरा रहे हैं भारत परतंत्र है दुष्टों ने अंसहाय समझकर इस पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया है तथा भारतवासियो द्वारा ही आपस में मतभेद कराकर अपना स्वार्थ सिद्ध करा रहे हैं यहाँ किसी के साथ न्याय नहीं किया जाता। महामना मदनमोहन मालवीय, भगतसिंह, लाला लाजपत राय, गणेशशंकर विद्यार्थी तथा गाँधी जो राष्ट्र का भला करने वाले थे तथा समस्त राष्ट्र को जो प्रिय अहिंसावादी पूजनीय हैं उनके साथ भी न्याय नहीं किया तथा उन्हें जेल भेज दिया। इस भारतवर्ष में जो बड़े-बड़े ऋषियों की संतानें हैं वे सभी भ्रष्ट हो गई है उनमें न क्षात्रतेज है न मर्यादा है उनका स्वाभिमान भी मृतप्राय हो गया है और न प्रण की दृढ़ता है। तपोवन रिक्त पड़े हैं। खुले-आम गौ-वध हो रहा है, हिंसा हो रही है, अत्याचार हो रहे हैं, कोई किसी को रोकने वाला नहीं, देश निर्धन होता जा रहा
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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