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________________ 121 पं. जुगलकिालेर मुखार “पुगवार" व्यक्तित्व एवं कृतित्व बुद्ध वीर जिन हरि हर ब्रह्मा, या उसको स्वाधीन कहो। भक्तिभाव से प्रेरित हो यह, चित्त उसीमें लीन रहो। मेरो भावना, पद क्रमांक - 1९ जिन शिव ईश्वर-ब्रह्मा-राम, बुद्ध-विष्णु हर जिसके नाम। राग-त्याग पहुंच निज धाम, आकुलता का फिर क्या काम ।। आत्म कीर्तन-सहजानंद वर्णी तीसरे, श्री संतोष जड़िया ने "श्री युगवीर" की वाणी को रेखाओं में जीवंत किया है, इसे उसने आकृति दी है। चौथे, "मेरी भावना" की लोकप्रियता, सार्वभौमिकता, इस तथ्य से और भी अधिक स्पष्ट हो जाती है कि इसके अनेक प्रादेशिक भाषाओं में गद्य-पद्यानुवाद हो चुके हैं। अन्तर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी में तो इसके अनेक कवियों ने पद्यानुवाद किए हैं आचार्य श्रीविद्यासागर जी ने भी इसका अंग्रेजी पद्यानुवाद "माई सेल्फ (साउल) नाम से किया है, जो अत्यन्त सुनहरा है। सुन्दर है।" 10. मेरी भावना प्रबन्ध काव्य है या मुक्तक काव्य - "मेरी भावना" में प्रबन्ध काव्य और मुक्तक काव्य दोनों के लक्षण पाये जाते हैं, किन्तु मेरी दृष्टि में यह प्रबन्ध काव्य की अपेक्षा मुक्तक काव्य अधिक है। प्रबन्ध काव्य में पदों का पूर्वापर सम्बन्ध होता है जबकि मुक्तक काव्य में प्रत्येक पद स्वतंत्र होता है। "मेरी भावना" में द्वितीय एवं तृतीय पद्य परस्पर संबंधित हैं, शेष पद पूर्ण स्वतंत्र हैं। उनके अर्थ समझने के लिए पूर्व प्रसंग जानने के आवश्यकता नहीं है। वे स्वयं में पूर्ण हैं, उन्हें नीतिपरक पदों की तरह कहीं भी, कभी स्वतंत्र रूप से पढ़ा या उल्लेखित किया जा सकता है। फिर भी "मेरी भावना" का प्रत्येक पद एक हार में पिरोये गये मोतियों की तरह अनेक स्थान पर सुशोभित है। अतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि "मेरी भावना" प्रबन्ध काव्य होकर भी मुक्तक काव्य है और मुक्तक काव्य होकर भी प्रबन्ध काव्य है, जो भी है, है बहुत सुन्दर, बहुत रमणीय।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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