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________________ प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व धर्माचरण से विश्व कलयाण एवं राष्ट्र की उन्नति 105 पद 9 एवं 11 में धर्माचरण से विश्व के जीवों के कल्याण एवं राष्ट्रों की उन्नति की भावना व्यक्त की है। यह "वसुधैव कुटुम्बकम्" का प्रयोगिक रुप है। जगत के सभी जीव सुखी रहें, भयभीत न हों और बैर-पाप- - अभिमान छोड़ कर नित्य नये मंगल गान करें। घर-घर में धर्म की चर्चा हो और निंद्यपाप अशक्य हो जावें। सभी जीव अपने स्वभाव रुप ज्ञान - चारित्र में वृद्धि करें (पद 9)1 मोहरूप अज्ञान का नाश हो और विश्व में परस्पर प्रेम का प्रसार हो । कोई किसी से अप्रिय-कटु-कठोर शब्द न बोले और वस्तु स्वरुप का विचार करते हुए कर्मोदय जन्य दुख और संकटों का सामना समतापूर्वक करें (पद - 11) सुखी राज्य एवं पर्यावरण-रक्षा का आधार अहिंसा कवि ने पद 19 में पर्यावरण की रक्षा एवं प्रजा की सुख-शांति के सूत्र दिये हैं। अहिंसा धर्म के प्रचार-प्रसार से पर्यावरण की रक्षा और जगत के जीवों का कल्याण होगा। छहकाय के जीवों की रक्षा ही अहिंसा और पर्यावरण रक्षा है। उससे अतिवृष्टि - अनावृष्टि न होकर वर्षा समय पर होगी। रोगमहामारी - अकाल नहीं होगा। प्रजा शांतिपूर्वक रहेगी। राजा अर्थात् शासकगण धर्मनिष्ठ, अर्थात् न्याय नीति एवं सदाचार पूर्वक प्रजा की रक्षा करें। ऐसी स्थिति में सभी राष्ट्र उन्नति करेंगे। संक्षेप में, "मेरी भावना" विश्व के जीवों के कल्याण, अभ्युदय और निःश्रेयस पद की प्राप्ति की आदर्श विचार-आचार संहिता है। मेरी भावना के अनुरूप जीवन रूपांतरित हो, यही कामना है। मेरी भावना की गुणवत्ता, सार्वजनिकता एवं सर्वधर्म समभावना का अन्तःपरीक्षण कर प्रज्ञा चक्षु पण्डित शिरोमणि पं. सुखलालजी संघवी ने इसकी न केवल मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की थी, अपितु गुजरात के समस्त जैन
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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