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________________ युगवीर की राष्ट्र को अमूल्य देन - "मेरी भावना" डॉ. (श्रीमती) कृष्णा जैन, ग्वालियर हे वाणी के धनी सत्यव्रत त्यागमयी जीवन है। हे महापुरुष हम सबका तुमको शत-शत बार नमन है। कुछ लोग बड़े घर में जन्म लेकर बड़े बन जाते हैं। कुछेक बड़ों की कृपा से बड़े बनने का श्रेय प्राप्त कर लेते हैं। बहुत कम ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अपने पुरुषार्थ और सेवा साहित्य के बलबूते पर अपने को बड़ा बना लेते हैं। पं. श्री जुगलकिशोर " मुख्तारजी" इसी कोटि के विरल किन्तु जुझारु व्यक्तित्व के धनी हैं; जिन्होंने अपने जीवन की अनेक दशाब्दियों समाज सेवा में खपा दी। और इसी ब्याज से आज आप ग्राम नगर एवं राष्ट्रीय स्तर पर हर क्षेत्र में समाहत हैं। ग्राम सरसावा की मृतिका ने सायंकाल की बेला में, मार्ग शीर्ष शुक्ला एकादशी विक्रम सं. 1934 को इस ज्ञान तपस्वी के चरणों का स्पर्श प्राप्त किया और आगे चलकर यही ज्ञान तपस्वी अपने शताधिक निबन्धों, भाष्यों, कविताओं, लेखों के माध्यम से राष्ट्र भारती के इतिहास में अमर हो गया। "मेरी भावना" महाकवि युगवीर की सबसे प्रसिद्ध और मौलिक रचना है। कविता भावों की विशेष उद्बोधिका होने के कारण मानव को अभीष्ट कार्य में प्रवृत्त करने का सबसे अभीष्ट साधन होती है। यह हृदय के ऊपर गहरी चोट करने के साथ ही उसे सद्यः उत्तेजित भी करती है। और यही कारण है कि महाविभूति युगवीर ने अपनी राष्ट्रीय सोच, राष्ट्रीय चिन्तन एवं राष्ट्रीय एकता के लिए अपने हृदय के उद्गारों को व्यक्त करने का माध्यम कविता को ही बनाया। मेरी भावना कविता में कुल 11 पद्म हैं। जिनके माध्यम से कवि ने संसार के समस्त प्राणियों के प्रति सुख की कामना की है।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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