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________________ Pandit Jugal Kishor Mukhtar Yugveer Personality and Achievements - - - व्यक्त करती है। पाठक जब एकाग्र-चित्त होकर इसका पाठ करता है तो उसके मन को अपार शान्ति मिलती है। कविता की भाषा इतनी सरल है कि मामूली पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी इन पंक्तियों का भाव आत्मसात कर लेता है। कवि ने इस रचना में अपने हृदय के भावों को उड़ेल कर रख दिया है। केवल जैन समाज में ही नहीं अपितु इतर समाज में भी मेरी भावना इतनी लोकप्रिय है कि अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद होकर लाखों की संख्या में वितरित हो चुकी है। इसमें जैन, बौद्ध, ईसाई, हिन्दू, मुस्लिम आदि सभी धर्म ग्रन्थों का सार विद्यमान है। इसे सर्वोदयी रचना कहा जावे तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। कारणगुणपूर्वकः कार्यगुणो दृष्टः। कारण के गुण के अनुसार ही कार्य का गुण देखा जा सकता है। -वैशेषिक दर्शन (१।१।२) ख्यातिं यत्र गुणा न यान्ति गुणिनस्तत्रादरः स्यात् कुतः।। जहाँ गुणों की प्रशंसा नहीं होती, वहाँ गुणी का आदर कैसे हो सकता -सीत्काररल (वल्लभदेव की सुभाषितावलि, २८४) गुणैरुत्तमतां याति, नोच्वैरासन-संस्थितः। प्रासादशिखरस्थोऽपि, काकः किं गरुडायते। मनुष्य गुणों से उत्तम बनता है, न कि ऊँचे आसन पर बैठा हुआ उत्तम होता है। जैसे ऊँचे महल के शिखर पर बैठ कर भी कौआ कौआ ही रहता है, गरुड नहीं बनता। -चाणक्यनीति
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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