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________________ प बुगलकिशोर मुखार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व मेरी द्रव्य पूजा नामक रचना में मुख्तार सा.द्रव्य पूज्य से अधिक भावपूजा को महत्त्व देते हैं। प्रत्येक द्रव्य भगवान् को अर्पित करने में उन्हें कुछ न कुछ अशुद्धि दिखाई देती है। उदाहरणार्थ नीर क्यों अशुद्ध है, देखिए कृमि कुल कलित वीर है, जिसमें मच्छ कच्छ मेंढक फिरते। है मरते और वहीं जनमते, प्रभो मलादिक भी करते। दूध निराले लोग छुड़ाकर, बच्चे को पीते-पीते, है उच्छिष्ट अनीति-लब्ध, यों योग्य तुम्हारे नहीं दीखे ॥ यदि अष्टद्रव्य में कुछ न कुछ दोष है, तो वस्त्राभूषण वगैरह भगवान् को क्यों नहीं अर्पित किए जाय। इसका उत्तर मुखतार सा. देते हैंयदि तुम कहो 'रलभूषण-वस्त्रादिक क्यों न चढ़ाते हो, अन्य सदृश, पावन हैं, अर्पण कराते क्यों सकुचाते हो। तो तुमने नि:स्तर समझ जब खुशी-खुशी उनको त्यागा, हो वैराग्य-लीन-मति स्वामिन् ! इच्छा का तोड़ा तागा। तब क्या तुम्हें चढ़ाऊं वे ही, करुं प्रार्थना ग्रहण करो। होगी यह तो प्रकट अज्ञता तब स्वरुप की सोच करो। मुझे धृष्टता दीखे अपनी और अश्रद्धा बहुत बही, हेय तथा संत्यक वस्तु यदि तुम्हें चढ़ाऊँ घड़ी घड़ी॥ कवि की दृष्टि में द्रव्यपूजा और भावपूजा यह है - इससे 'युगल' हस्त मस्तक पर, रखकर नम्रीभूत हुआ, भक्ति सहित में प्रणमूं तुमको बार-बार गुण लीन हुआ। संस्तुति शक्ति समान करें औ सावधान हो नित तेरी; काय-वचन की यह परिणति ही अहो! द्रव्यपूजा मेरी॥ भाव भरी इस पूजा से ही होगा, आराधन तेरा, होगा तब सामीप्य प्राप्त औ सभी मिटेगा बग फेरा। तुझमें मुझमें भेद रहेगा, नहिं स्वरुप से तब कोई, ज्ञानानन्द-कला प्रकटेगी, घी अनादि से वो खोई ।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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